शनिवार, 4 मार्च 2023

फुरसतिया हूँ

 गंगाजल में पुष्पित तैरती लुटिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


भाषा रही भरभरा जेठ दुपहरिया 

आशा विश्वभाषा हिंदी हो चुटिया

इस षड्यंत्र का मैं खूंटिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


लूट रहे हिंदी जग हिंदी के रखवाले

मंच, किताब सजा बनते हिंदी शिवाले

इस भ्रमजाल का मैं हथिया हूं

हां मैं फुरसतिया हूँ


महानगरों में रहे फैल हिंदी मदारी

हिंदी से मिले लाभ हिंदी के हैं जुआरी

ऐसे भ्रष्ट झूठे चिंतक का सुतिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


अनेक किताब लेखन स्व सुख भाया

कितने कागज, स्थान किए यह जाया

आत्मश्लाघा विरोध की दुनिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


हिंदी के लिए हमेशा उपलब्ध हूँ खलिहल

राजभाषा समेत हिंदी विकास हो अटल

कर्मभूमि का श्रमिक ना गलबतिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

05.03.23

12.03

गुरुवार, 2 मार्च 2023

फागुन गीत


अस्तित्व ही घुल जाए

आपकी बातों, ठिठोली में

अब कैसा कोई रंग चढ़े

मुझपर इस होली में


शब्द सधे सब रंग गहे

तरंग, उमंग शब्द डोली में

अभिव्यक्त का उड़े भाव

निःशब्द आपकी होली में


लिखनेवालों ने लिख डाला 

होली को रसबोली में

फागुन गीत भटकते दिखते

देह धाम मद खोली में


पर्व कोई तो बदल रहा

वासना भाव छिछोरी में

श्रृंगार अब लुप्त हो चला

बुढ़वा देवर लागे होली में।


धीरेन्द्र सिंह

03.02.23

09.51


इस होली में


हिचके रंग गुलाल, देख गुलाबी गाल

ना सोचें नारी ही, रखतीं सुर्खाबी ताल

पुरुष गाल रंग जाएं, फागुनी ठिठोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

नारी नयन सृष्टि पिचकारी, लगे दुधारी

अंग-अंग रंग लिए, हो अनुपम चित्रकारी

पुरुष ठगा सृष्टि निरखे, अटकी बोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

घिर जाएं नारियों से, कान्हा ना बन पाएं

देख घबराया चेहरा, संग नारी मुस्काएं

झुकाए पलकें सोचे, रंग बन गए टोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

महिलाओं की देख लगन, गगन रंग डूबा

होली में जब नारी निकलें, सहमे सूबा

रंग लिए आजीवन चलतीं, नारी झोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में।

 

धीरेन्द्र सिंह

02.02.23

20.24

 

 

बुधवार, 1 मार्च 2023

होली

 होली



भींगी दरस तुम्हारी गुईंया

अबकी होली रंगदारी में

नस-नस भींगे अकुलाए

कैसी लगन रसदारी में


नैन चैन सब छीने तकते

अंखियन की गुलकारी में

जैसे होती बिदाई में

लिपटे बिटिया महतारी से


होली तुमसा बदल गयी है

आकर्षण की छविकारी में

अब कहाँ वह भाव-भंगिमा

नयनों की रिश्तेदारी में


हाँथ गुलाल मल गाल लाल

अंगों की तरफदारी में

तुम भी कुछ ऐसी हो बहकी

लोगों की छीछेदारी में


होली में भावों की टोली

बोली कबीरा लयकारी में

रंग-रंग बौराए उड़ते

चाहत की सिसकारी में।


धीरेन्द्र सिंह





मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

विश्व पुस्तक मेला


ना भीड़ ना ठेलमठेला

जेब में न हो अधेला

हिंदी का रंगीन है ठेला

देखें विश्व पुस्तक मेला


प्रकाशकों के सजे स्टॉल

गीत एक अलग ताल

खेल सांप और संपेला

देखें विश्व पुस्तक मेला


हिंदी चिंदी बन बैठी

रद्दी भाव सुधि पैठी

थोक भाव विक्रय खेला

देखें विश्व हिंदी मेला


प्रकाशक करें कदमताल

कुछ वक़्ता स्टॉल-स्टॉल

हिंदी की कैसी यह बेला

देखें विश्व हिंदी मेला


हिंदी में भी बड़े मदारी

कर्म छोड़ शब्द जुआरी

ख्याति, प्रसिद्धि की बेला

देखें विश्व हिंदी मेला।


धीरेन्द्र सिंह