मैं कहता हूँ शब्द भावनाओं की छांव में
मैं बहता निःशब्द कामनाओं के गांव में
इन बस्तियों को देखिए जुट रहे इस कदर
दहशत पसर गयी है किसी पहचाने दांव में
मैं खड़ा रहा निहत्था थका शब्दों में ढलते
घेरे हुए समझ न सके एड़ी फटी निभाव में
प्रश्नों से घिरा मैं देता रहा उत्तर तो निरंतर
सिफर मिला मुझको इस मूल्यांकन ठाँव में
मेरे शब्द रहे असफल या प्रभाव में हलचल
पढ़ते गए गलत उलझनों की कांव-काँव में।
धीरेन्द्र सिंह
15.12.2025
20.00