कभी इधर कभी उधर, दृष्टि से गये उतर
सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर
हिन्दू संस्कृति को हिन्दू हैं कितना जानते
हिंदुत्व का प्रवाह प्रखर कई नहीं जानते
कर्म आकृति हिंदुत्व अखंड भारत का सफर
सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर
धर्म की नहीं बात करें, लोग समझते अपराध
धर्म की परिभाषा गलत, लक्ष्य कुछ रहे साध
हिन्दू राष्ट्र भारत है, इसे बोलने में कांपे अधर
सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर
एक वर्ग भटक रहा जबकि बेजोड़ घटक रहा
सर्वधर्म हो पल्लवित स्वाभाविक हिन्दू राष्ट्र कहा
राष्ट्र लय में सब मिल थिरकें धर्म का करते कदर
सर्वधर्म समभाव डगर, सृष्टि में दिखे किधर।
धीरेन्द्र सिंह
12.11.2025
19.34

