आज शबनम भी उबलने लगी है
रोशनी भी बर्फ सी लगने लगी है
इस सुबह का खो गया आफताब
सांसो में आह सी चलने लगी है
ज़िंदगी रूसवा हुई पग खोल गई
बंदगी घुटनों पर मचलने लगी है
सूना-सूना खोया-खोया मंज़र हुआ
तरन्नुम भी अब बहकने लगी है
आपकी इनायत की है दरख्वास्त
धड़कनें भी अब तड़पने लगी हैं
बमुश्किल ज़िंदगी से हुआ था सामना
अब यह कैसी हवा चलने लगी है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
आप जैसे पढ़नेवालों संग
गुम होकर गुलिस्तॉ में छुप जाना चाहिए
लेकर नई खुश्बू रोज़ गुनगुनाना चाहिए
करवट बदलती ज़िदगी कब कर जाए क्या
पुरवट सा खुशियों को अब बहाना चाहिए
नित नई चुनौतियों में संघर्ष,हार-जीत है
निज़ता को बांटकर अजब तराना चाहिए
एक मुस्कराहट से मिले दिल की हर आहट
घबराहट समेटकर संग खिल जाना चाहिए
मन की उमंग पर तरंग हो ना फीकी कभी
आप जैसे पढ़नेवालों संग जुड़ जाना चाहिए.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
लेकर नई खुश्बू रोज़ गुनगुनाना चाहिए
करवट बदलती ज़िदगी कब कर जाए क्या
पुरवट सा खुशियों को अब बहाना चाहिए
नित नई चुनौतियों में संघर्ष,हार-जीत है
निज़ता को बांटकर अजब तराना चाहिए
एक मुस्कराहट से मिले दिल की हर आहट
घबराहट समेटकर संग खिल जाना चाहिए
मन की उमंग पर तरंग हो ना फीकी कभी
आप जैसे पढ़नेवालों संग जुड़ जाना चाहिए.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
मिल रहे हैं द्रोन
कौन है सम्पूर्ण और अपूर्ण कौन
सागर की लहरें मंथर पहाड़ मौन
ज़िंदगी के वलय में एकरूपता कहॉ
तलाशते जीवन में मिल रहे हैं द्रोन
एकलव्यी चेतनाएं अप्रासंगिक बनीं
दरबारियों के विचार हैं तिकोन
अब मुखौटा देखकर लगती मुहर
हर नए हुजूम को बनाती पौन
लक्ष्य के संधान की विवेचनाएं
देगा परिणाम अब बढ़कर कौन.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
क्यों इतनी दूर हो गईं
अर्चनाएँ अब एक दस्तूर हो गई
खुशियाँ हक़ीकत की नूर हो गई;
खुशियाँ हक़ीकत की नूर हो गई;
इंतज़ार अब तपती धरती सा लगे
बदलियॉ ना जाने क्यों मगरूर हो गई
एक आकर्षण सहज या कि बेबसी महज़
असहजता ज़िंदगी का सुरूर हो गई
एक तपन की त्रासदी की चेतना संग
बारिशों की खातिर जमीं मज़बूर हो गई
क्या यही प्रारब्ध मेरा बन गया है
निस्तब्धता भी लगे गरूर हो गई
कामनाएं पुष्प की देहरी ना चढ़े
आराधनाएं अटककर हुजूर हो गई
चाह के आमंत्रण की अविरल गुहार
राह की रहबर तो चश्मेबद्दूर हो गई
सांत्वनाएं अर्थ अपना छोड़ने लगी हैं
आप मुझसे क्यों इतनी दूर हो गईं.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
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