गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

सम्मान है

 मैंने तुमको पढ़ लिया

उम्मीद भर गढ़ दिया

मेरा अब क्या काम है

बस तुम्हें सम्मान है


तुम अधरों की नमीं

ज़िन्दगी की हो जमीं

शब्द भाव क्या धाम है

बस तुम्हें सम्मान है


तथ्य की तुम स्वरूप हो

मेरे जीवन की ही धूप हो

यहां न सुबह न शाम है

बस तुन्हें सम्मान है


पारदर्शिता मेरी तुम भ्रमित

मुझको समझना हुआ शमित

मेरी गलियों में गैरों का गुणगान है

बस तुम्हें सम्मान है


हृदय की उड़ान नव वितान

साथ उड़ने पर कैसा गुमान

मन की झोली में प्यार तापमान है

बस तुम्हें सम्मान है।


धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 30 नवंबर 2021

भोर की बेला

 भावों का प्रवाह है, मन भी लिए आह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह 


चांद भी धूमिल, सूरज ओझल, सन्नाटा

कलरव अनुगूंज नहीं पर सैर सपाटा

तुम संग युग्म तरंगित, ढूंढे कोई थाह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह


अंगड़ाई के अद्भुत तरंग, जैसी निज बातें

कितना कुछ कर दी समाहित, क्यों बाटें

दूर बहुत है, सुगम न मिलती कोई राह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह


तुम उभरी क्या, छुप गए सूरज-चांद

रैन बसेरा कर, जागा सुप्तित उन्माद

युग्मित भाव हमारे, भरे भोर में दाह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह।


बरखा चूमी सड़कें, दिसंबर एक माह

भोर भींगी लपकी, शीतल हवा की बांह।


धीरेन्द्र सिंह