गुरुवार, 24 नवंबर 2011

झुक गयी साँझ

झुक गयी साँझ एक जुल्फ तले
चाँद हो मनचला इठलाने लगा
सितारों की महफ़िलें सजने लगी
आसमान बदलियाँ बहकाने लगा

नीड़ के निर्वाह में जीव-जन्तु व्यस्त
चूल्हों में अभाव अकुलाने लगा
मान-मर्यादा के उलझन में उलझ
मकड़जाल फिर वही सुलझाने लगा

शाम का सिंदूरी आमंत्रण तमस में
राग संग रागिनी जतलाने लगा
गीत,स्वर रूमानियत के रस पगे
भावों को परिवेश बहलाने लगा

सूर्य सा तपता हुआ श्रम स्वेद बन
दिन को अपना क्लेश बतलाने लगा
साँझ,जुल्फ, चाँद ,सितारे सहमे
आह से वह ख्वाबों को जलाने लगा.
   

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 23 नवंबर 2011

प्यार के गीत लिखो




स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें ख्वाबों में अक्सर दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है

चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार भी मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है

इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार  
आज के वक़्त को ना भाती है

प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेसबुक,ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ  
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।

  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.