गुरुवार, 12 मई 2022

पर्देदारी

 सत्य सजल नयन उपवन

भावों की अविरल शीतलता

हर सृष्टि रचे अपनी धुन में

जग अपनी रचे लखि नीरवता


शब्दों का क्षद्म उपयोग नहीं

संवाद प्रवाहित निर्मल सरिता

हर लहर फहर दिल तक धाए

अनकहे प्रवाहित सबल धरिता


पट खोल लिए रचि पर्देदारी

कुछ दरद चटक निज करिता

यह भी एक संवाद सुफल जग

एक भाव लिए जीवन चरिता।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 11 मई 2022

ढह रही वह

 एक मेरी सर्जना विकसित अंझुरायी

भावनाएं अति चंचल कृति घबराई

लड़खड़ाहट में टकराहट की ही गूंज

फिर भी न जाने रहती है इतराई


रुक गयी है इसलिए ढह रही वह

भ्रमित लोगों की है थामे अंजुराई

एक टीला गुमसुम ताकता है राह

जीवंतता दमित निष्क्रियता में दुहाई


मनचलों का मनोरंजनीय टीम 

मन के हर चलन की ऋतु छाई

कामनाओं की झंकार झूमे नित

सर्जना में निज अर्चना मन भाई।


धीरेन्द्र सिंह