शब्दों के मुंह पर
किलकारी है
ज़ुल्फ चाहत ने फिर
सँवारी है
भाव भींगे से उनींदे
से अलसाए
छा गयी फिर वही खुमारी
है
कितने दिन दूर रहा
हूर से
सदाएँ भी न मिली नूर
से
ज़िंदगी की भी क्या दुश्वारी है
कभी प्यारी तो लगे
खारी है
वक़्त के हाशिये का रंग अलग
बदल ना पाये चाहतों की छलक
पलक झपकते दिखे लाचारी है
कि लगे प्यारी यह दुनियादारी है
जुल्फ के साये सा आश्रय
कहाँ
साँसों की सरगमों सा
प्रश्रय कहाँ
मौन स्पर्शों में भी
खुद्दारी है
चंदा-चकोर सी यह चित्रकारी है।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बहुत बढि़या लिखा है ..।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति , बधाई
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंगहन भावों की अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
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