शुक्रवार, 7 जून 2024

दौड़ते जा रहा

 दाल उबल रही भोजन की आस है

पेट का नाम ले संभावना हताश है

यह एक क्षद्म है या स्व छलावा

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


रूठ गयी कविता बोली भाव नहीं

प्यार पर लिखते हो प्यार है कहीं

मोहब्बत में तोहमत चलन खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


कविता बोली सबकुछ है यहां संभव

जीत के निनाद में सत्य है पराभव

दौड़ते हुए पर भी नियंत्रण खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


समय, काल, भाल देख कविता तौले

सर्जन का मूल मंत्र वह हौले से बोले

प्रत्येक रचना में मुखर कोई फांस है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2024

22.51




गुरुवार, 6 जून 2024

लोक सभा 24

 धैर्य सहित प्रतीक्षा सदीक्षा की आस्था

राम मंदिर निर्माण जन-जन की आशा

भव्य निर्माण में दिव्य उपलब्धियां हैं

सरकार, न्यायालय ने रोका था तमाशा


“राम आएंगे” की थी अनुगूंज चहुंओर

असंख्य कदम अयोध्या नवपरिभाषा

“जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे”

“उनको” पूर्ण ला ना पाए, सबकी जिज्ञासा


लोक सभा चुनाव निर्णय है सुखदाई

अयोध्या परिणाम असंख्य की हताशा

कैसे एक सपाट झपट झकझोर दिए

कौन जुगत से बज ना सका वह ताशा


व्यथित हृदय कहे अयोध्यावासी बहके

हुआ चुनाव न चहके भूले रामवासा

राम आ गए धाम पा गए अयोध्यावासी

रोजी-रोटी, प्रगति-प्रसंस्करण मधुवासा।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

17.34



बुधवार, 5 जून 2024

तुम चलोगी

 प्रणय पग धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे


कहो, तुम चलोगी

संग मेरे बहोगी

सपनो को घेरे-घेरे

मन के तीरे-तीरे


आत्मिक है निमंत्रण

सुख शामिल प्रतिक्षण

उमंग मृदंग फेरे-फेरे

मन के तीरे-तीरे


व्यग्र समग्र जीवन

चतुराई से सीवन

छुपाए तागे उकेरे-उकेरे

मन के तीरे-तीरे


आओ करें मनमर्जियाँ

अनुमति की ना मर्जियाँ

नव उद्गम धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

05.16