यह उम्र गलीचा
वह मखमली एहसास
समंदर ने कब कहा
पानी में तड़पे प्यास।
धीरेन्द्र सिंह
प्यार
कोरोना काल में
काल कवलित,
दिलजलों ने कहा
कैसे मरा,
स्वाभाविक मृत्यु
या मारा किसी ने,
कौन समझाए
प्यार मरता है
अपनी स्वाभाविक मृत्यु
भला
कौन मार सका ,
प्यार तो प्यार
कुछ कहें
एहसासी तो कुछ आभासी,
भला
कौन समझाए
दूर हो या पास
होता है प्यार उद्गगम
एहसास के आभास से,
मर गया
स्मृतियों के बांस पर लेटा
वायदों का ओढ़े कफन
उफ्फ़ कितना था जतन।
धीरेन्द्र सिंह
डालियां टूट जाती हैं
लचकती हैं हंस टहनियां
आप समझे हैं समझिए
कैसी इश्क की नादानियां
एक बौराई हवा छेड़ गई
पत्तों में उभरने लगी कहानियां
टहनियां झूम उठी प्रफुल्लित
डालियों में चर्चा दिवानियां
गुलाब ही नहीं कई फूल झूमे
फलों को भी देती हैं टहनियां
डालियां लचक खोई ताकती
गौरैया आए चहक करे रूमानियां।
धीरेन्द्र सिंह
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आज
होता सहज नहीं विश्वास
कल तक अनदेखी विद्या का
आज सकल सिद्ध है राज
योगी रामदेव की महिमा मुस्काए
एक चना का है यह अंदाज
एक ब्रह्म एक ही आत्मा एकं अहं
विस्मित निरखे परवाज
अथक परिश्रम अथक सहयोग
फला_फूला विस्तृत हुआ योग
भारत विश्व योग गुरु बन स्थापित
संचालित नित घर_घर यह योग।
धीरेन्द्र सिंह