शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

कैसा यह संसार है


आज पलटकर जीवन ने, दिया मुझे धिक्कार है
भारत भूमि भयभीत है, कितना भ्रष्टाचार है

जीवन के हर पग पर, पक रहा निरंतर निठुर
सत्कर्मों की सादगी, सजल, अचल, बेकार है

हर विरोध के स्वर को, लें दबोच पल भर में  
निचुड़-निचुड़ कर निचुड़े, कहें यही व्यवहार है

हो विनीत सह लेने की, आदत या मजबूरी है
सहनशक्ति सह लेती सब, ना कोई तकरार है

सारे रिश्ते रिसते खिसकें, गतिशील मझधार है
और किनारे टूटें-फूटें, नावों का व्यापार है

सूखी बाती दीपक थाती, निराधार आकार है
एकजुट हो ना पाएँ, कैसा यह संसार है।     



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

आज तमस में

आज तमस में फिर सुगंधित अमराई है 
सितारों ने जमघट आज फिर लगाई है 
चाँदनी ने हौले से जो छूआ चौखट 
आँगन तब से सिमटी, लजाई है 

झूम रही शाखें, पत्तियाँ करें बातें 
झींगुर झनक उठे, चाँद से दमक उठे 
हवाओं की ठंडक में निशा लिपट धाई है
आँगन के कोनों से गीत दी सुनाई है 

कहने को रात है पर प्रखर संवाद है 
मन बना लेखनी भाव लगे दावात है 
एक ऋचा पूर्णता को पृष्ठ-पृष्ठ तराई है 
अद्भुत अपूर्व असर आस की छजनाई है

आहट भी शोर करे निशा में भोर करे 
आँगन में चाँदनी आज ना शोर करे 
पौ फटने से पूर्व पौ की रहनुमाई है 
सांखल ना बोल उठे रामा दुहाई है।       

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.