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मंगलवार, 5 मई 2020

कविता और शराब

कविता भी शराब होती है
रंग लिए
ढंग लिए
उमंग की तरंग लिए
व्यक्ति में घुल खोती है
कविता भी शराब होती है

इसमें कवि "फ्लेवर" है
लेखन का "टेक्सचर" है
कड़वाहट और मिठास है
मनभावों को खुद में डुबोती है
कविता भी शराब होती है

आरम्भ की पंक्तियों में "वाह"
मध्य भाग में मन चाहे "छाहँ"
अंत में लगे पकड़े कोई "बाहं"
इस तरह अंकुर उन्माद बोती है
कविता भी शराब होती है

जुड़े यदि गायन बन जाती "बार"
नृत्य यदि जुड़े तो महफ़िल खुमार
शब्द भावों से हृदय में उठे झंकार
कविता-शराब में दांत कटी रोटी है
कविता भी शराब होती है।

धीरेन्द्र सिंह

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रविवार, 8 मई 2011

नेह तुम्हारा


अब भी मेरे नयन पुलकित
आस की राहें हैं हर्षित
कौन कहता चुक गया स्नेह
शब्द मेरे नहीं हैं कल्पित

नेह जब तक है तुम्हारा
कल्पना में तुम सा तारा
कर दिया है जग समर्पित
भावों से तुम्हारे हो समर्थित

उम्र बढ़ता सा मचान है
संवेदनाएं लिए गहन ज्ञान है
जीवन कर रहा अर्जित
शून्य स्वप्निल गहन अर्थित

मोड़ कितने छोड़ गए
तोड़ गए कुछ निचोड़ गए
एक बस आधार निर्मित
आशाओं के द्वार सुरभित.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.