अनुपम,अनुभूत हो, अज्ञेय हो
रिमझिम, झिलमिल प्रभाव है
कलरव की अनुगूंज तुम हो
चन्दा सरीखा तो स्वभाव है
चंदनीय सुगंध ले शीतलता नयी
पुरवैया का तुममें बयार है
रूप हैं तुम्हारे जग में कई
हर रूप से बरसता प्यार है
मुस्कराहटों में वादियों की छटा
अंग-अंग सप्तक का तार है
सृष्टि सुघड़ सप्तरंगी लग रही
हर जगह तुम्हारा खुमार है
इन्द्रधनुषीय भंगिमाएं हरदम लुभाए
भावनाएं पूछतीं कहाँ इकरार है
यथार्थ हो या कि मृगमरीचिका
विश्व में असुलझा यह तकरार है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....... हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई.
वाह क्या अद्भुत छटा बिखेरी है कविता के माध्यम से. सुंदर अनुभूति और सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अहसास..बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसूफी रचना की तरह प्रियतमा और ईश्वर दोनों को देख रही हूँ इसमें ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना है श्रीमान !!!!!!!!!!!!!!!
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