सोमवार, 18 अप्रैल 2011

प्रतिक्रियाएं आपकी

प्रतिक्रियाएं आपकी प्रतीक हो गईं
लेखनी मेरी भी अभिभूत हो गई
शब्द-शब्द स्नेह की हो रही बारिश
दिल की दिल से करतूत हो गई

प्रतिक्रयाएं आपकी नभ का विस्तार ले
स्पंदनों के बंधनों की सबूत हो गई
कामनाएं पुलकित हो सजाएं कवितावली
प्रतिक्रयाएं मन्नतों की भभूत हो गई

मन कुलांचे मारता लिख रहा है
भावनाएं अंतर्मन की दूत हो गईं
प्रतिक्रियाएं मिल रहीं लगकर गले
लेखनी की प्रखर मस्तूल हो गईं.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

11 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतिक्रियाओं के विषय में आपने बहुत सुंदर शब्दों में प्रकाश डाला है ...यही प्रतिक्रियाएं हमारी रचनात्मकता को विविधता लाती हैं ....बहुत सुंदर आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रतिक्रियाएं जब मिलती हैं गले
    तो कानों में चुपके से कुछ कह जाती हैं ...
    भभूत बन मन को पवित्र कर जाती हैं
    बहुत अलग से एहसास

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचना ...प्रतिक्रिया पर ऐसा किसी ने नहीं लिखा ...

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रतिक्रियाएं आपकी प्रतीक हो गईं...
    बहुत अच्छी रचना.. लाजवाब..

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रतिक्रिया पर कविता, क्या बात है. अच्छी प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर रचना है ,धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रतिक्रियें मिल रही लगकर गले... बहुत सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं