रविवार, 23 नवंबर 2025

सजिए खूब

विवाह का समय है यह तो

सभी करते हैं भरपूर श्रृंगार

डॉक्टर भी कितने नासमझ

कहें सर्दी कारण हृदय विकार


पुरुष भी सलोन में जाकर सजते

अबके पुरुष छवि को देते संस्कार

नारी पारंपरिक सज्जा आधिकारिणी

कैसी लग रही हूँ पूछें होकर तैयार


सौंदर्य सुनियोजित प्रायः है बोलता

दृष्टि प्रशंसात्मक बिन यौन विकार

चाह कर भी बोल न पाए "क्या बात"

कान उमेठ देगा सामाजिक आचार


हृदय के लचीलेपन की है परीक्षा

वैवाहिक दिन में ऐसी होती झंकार

सजिए खूब चमकिए पर्व इसी का

स्वयं की सुघड़ प्रस्तुति भी अधिकार।


धीरेन्द्र सिंह

23.11.2025

19.22