शनिवार, 2 अगस्त 2025

गांव

 गलियां सूनी हैं पहेलियों के पांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


राहों की माटी पकड़ रही हैं छोड़

धूल बनकर दौड़ती जिंदा कहां मोड़

खेत-खलिहान लगे कौवा की कांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


जेठ की भरी दोपहरी सा है सन्नाटा

चहल-पहल खुशियों को लगा चांटा

गिने-चुने लोग तरसे व्यक्तियों को छांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


बंटाई व्यवस्था पर अधिकांश हैं खेत

घर एक दूसरे से छुपाते हैं खबर, भेद

परिवार, खानदान में हैं नित नए दांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव


शाम ढलते ही होती कुछ वही सरगर्मियां

नशा विभिन्न प्रकार के रचते हैं शर्तिया

ग्रामीण संस्कृति में गायब हो रहे हैं गांव

निदिया न आए नयन भरे हैं गांव।


धीरेन्द्र सिंह

02.08.2025

15.08




गुरुवार, 31 जुलाई 2025

धर्माचार्य

 वासना से जुड़कर अब चर्चा चरित्र हो गयी

दो धर्माचार्य की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


सृष्टि के आरंभ से पनपती रही हैं कामनाएं

वृष्टि आर्थिक विकास की बलवती वासनाएं

नई परिभाषाएं भाव चरित्र में विचित्र बो गईं

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


देह की दालान से जुड़ा पवित्रता का मचान

धर्मग्रंथों में है उल्लिखित पवित्रता का विधान

कर्म कहीं दब गया देह छोड़ पवित्र लौ गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


नारी शोषण है नारी देह की रचित शुद्धता

पुरुष दबंगता से रही लड़ती नारी निहत्था

विकसित बौद्धिक समाज प्रज्ञा कौंध गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी


यह न राजनीति और ना बात विवादास्पद

मानवीय समाज और परिवार उत्पादक

वैवाहिक संस्था रही टूट प्रथा कैसी हो गयी

दो धर्माचार्यों की टिप्पणियां पवित्र हो गयी।


धीरेन्द्र सिंह

01.08.2025

10.54

न्यायालय

 तत्व छूट जाता सत्य रहता लड़खड़ाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


सत्ता और शक्ति में संभव है असंतुलन

नागरिकता ज्वलंत न तो संभव है दलन

आत्मा विचलित को विधि बांध न पाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता लगे तकिया

यह दुखद ऐसी समाज में चर्चित बतियां

मानवता के मूल्यों में कांध न लग पाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


गरजकर बरसकर दमभर सबका है सफर

राह अपनी चाह अपनी अन्य कुछ बेकदर

कृत्रिम जीवन संस्कृति को दीमक चाट छाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता।


धीरेन्द्र सिंह

31.07.2025

19.25



बुधवार, 30 जुलाई 2025

रीता है

 सब लोग कहें कुशल-मंगल सब बीता है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


सभी प्रयास सभी सावधानियां नियमावली

बढ़ते कदम अथक पर घुमाती रही वही गली

कभी कर्म कभी भाग्य कहीं प्रारब्ध लीला है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


कर्म के मर्म को समझ धर्म निरखें नर्म-गर्म

भाग्य के भाष्य में साक्ष्य के पथ्य पार्श्व कर्म

कर्मवाद भाग्यवाद बहुविवाद कौन जीता है

कौन जाने किसके जीवन में क्या रीता है


हर व्यक्ति कर भक्ति किसी नशे से कर आसक्ति

शालीन कोई अशालीन नशे से चाहे दर्द मुक्ति

शिष्ट और अशिष्ट व्यक्ति परिस्थितियों का छींटा है

कौन जाने किसके जीवन में  क्या रीता है।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2025

21.18


मंगलवार, 29 जुलाई 2025

भूंरी पत्ती

हवा के झोंके से आ गयी चिपक

भूंरी सी कम नमी वाली वह पत्ती

चिहुंक मन जा जुड़ा वहीं पर फिर

जहां जलती ही रहती भाव अगरबत्ती


थोड़ी कोमल थोड़ी खुरदुरी सी लगे

उम्र भी हो गयी देह की अपनी सूक्ति

हल्की खड़खड़ाहट से बोलना चाहे

मुझको छूते चिकोटी काटते भूंरी पत्ती


खयाल भी अकड़ जाते हल्के से जैसे

हवा संग दौड़ती-भागती यह भूंरी पत्ती

कभी लगता वही कोमलता सिहरन वही

अब सब ठीक लगे भटका दी भूंरी पत्ती


अचानक उड़ गई झोंका हवा का था तेज

रोकना, पकड़ना चाहा हवा से करते आपत्ति

कितनी गहराई से हम मिले वर्षों बाद जी

कहीं खोती ने दिल की हो गयी संपत्ति।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2025

08.55 

सोमवार, 28 जुलाई 2025

अविरल

 हरे पत्ते पर तैरता दीया

लय में बहती लहरें मंथर

भाव मेरे दीपक मान लो

और तुम लहरों सी निरंतर


समय हवा सा बहते जाता

दीया की लौ लचक धुरंधर

आस्था का गुंजन आह्लादित

तुम लगती हो कोई मंतर


लहरें खींचे और दीया बढ़े

लहर स्वभाव में गति अंतर

लौ की लपक चाहे कहना

लहर उचकती पढ़ने जंतर


दीया में है लौ जिया

लहरों में रही तृष्णा फहर

जीवन प्रवाह अविरल कलकल

चाहें भी तो ना पाएं ठहर।


धीरेन्द्र सिंह

29.07.2025

09.53





रविवार, 27 जुलाई 2025

ज्योति कालरा

 उम्र वरिष्ठता की सोच धर्म अब आसरा

53 वर्ष में करती हैं मुग्ध ज्योति कालरा

न तो उम्र छुपातीं न रंग बाल हैं छकाती

स्वयं पर ध्यान विशिष्ट स्वाभाविक माजरा


किसी व्यक्ति पर लिखना मतलब श्रेष्ठ है

उम्र की वरिष्ठता में आकर्षण ला धरा

सहज, स्वाभाविक नारी की अदाएं लिए

जीवन को जी रहीं कर पहल स्वभरा


नृत्य में निपुणता अभिव्यक्ति की भरमार

उम्र कुछ नहीं होता कहें विचारिए परंपरा

आज ही कुल चार वीडियो जो देखा तो

वरिष्ठों की बदलती सोच हैं ज्योति कालरा


गरिमा भी है गहनता भी और शोखियाँ

आसक्ति स्वयं पर अभिव्यक्ति भाव भरा

क्या खूब एक जीवंत वरिष्ठ पतंग सी लगें

मोहिनी हैं, आसक्त असंख्य ज्योति कालरा।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2025

13.27

शनिवार, 26 जुलाई 2025

हिंदी अज्ञानी

 अपशब्द कहिए हिंदी साहित्यकारों को

हिंदी में नया सार्थक करना कठिन है

गुटबंदी, चाटुकारिता विभिन्न विशेषण

सत्तर के दशक से हिंदी के यही दिन है


हिंदी और उर्दू को सगी बहन रहिए कहते

हिंदी की लिपि हिंदी के लगे दुर्दिन है

ना मंच मिला ना ही उद्घोषणा अवसर

अब हिंदी अंग्रेजी मिश्रित ताकधीन हैं


न्यायालयों और थाने की भाषा रही उर्दू

हिंदी उपेक्षा सतत हाशिए की गाभिन है

सभ्यता और संस्कृति से सीधे जुड़ी भाषा

वर्तमान में हिंदी कुछ राज्य में दीन है


हिंदी साहित्य का इतिहास चिंतन प्रथम

भारतीय संविधान राजभाषा नीति साथिन है

पाठ्यपुस्तकों की हिंदी की गुणवत्ता देखिए

चुनौतियां बहुत पर हिंदी किस अधीन है


वर्षों सीधे हिंदी प्रयोग से जो हैं जुडें

वह कर्म करते आरोपों के ना भिन-भिन हैं

अपनी योग्यता से हिंदी को समर्थित करें

अधूरे हिंदी ज्ञानियों की गूंजती धुन है।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

23.55

घूंघट

 बौद्धिकता में निहित नव हर्षिता

मनुष्यता का मुकुट है पारदर्शिता

बुद्धिमत्ता से संबंधों में भी घूंघट

विरले ही खुलकर जीते अर्पिता


स्पष्ट प्रदर्शन स्वयं की निमित्तता

क्लिष्ट जीवन क्यों क्या रिक्तिता

साफ-साफ कह दे वह ना मुहंफट

जितना स्वयं को खोलें उन्मुक्तता


दुनियादारी में पर्देदारी है कायरता

जैसा हैं वैसा दिखाएं स्व दग्धता

क्या मिलेगा जीवन में लेते करवट

चतुराई स्व से गैरों को न फर्क पड़ता


धर्म के बड़बोले धर्म की आतुरता

कर्म का दिखावा सोच में निठुरता

बहुसंख्यक घूंघट में बेसुरे खटपट

जैसा हो वैसा कहो स्व में मधुरता।


धीरेन्द्र सिंह

26.07.2025

15.20


शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

क्षमायाचना

 कड़वाहट भरे शब्द से दिया धिक्कार

"समय नहीं मिला" था उनका प्रतिकार

लंबा लिख अंग्रेजी में हम कुपित हो गए

"सॉरी" अंग्रेजी में लिख वह चुप हो गए


बैठा था अंधड़ था लड़खड़ाते कई विचार

"खेद पहुंचाना उद्देश्य न था" आंग्ल विचार

मेरे समर्पण मेरी गहनता से क्यों खेल गए

"एक्सीडेंट कल हुआ था" सहज बोल गए


यह नारी किस क्यारी की निर्मित प्रकार

समझें भी तो कैसे युग करता रहा विचार

मेरी उग्रता का वह गहन शमन कर गए

कुछ शब्द नहीं निकला ऐसे वह ढह गए


एक पीड़ा भाव क्रीड़ा सांस पश्चाताप हुंकार

नारीत्व विशालता समक्ष पुरुषत्व लगे कचनार

ईश्वर से प्रार्थना उन्हें कर स्वस्थ करें नए

करबद्ध क्षमायाचना हम यह क्या कर गए।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2025

14.44

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

उलाहना

 "भूल गए लगता"

पढ़ क्या कहता

व्यस्तता कारण नहीं

प्यार रहता हंसता


लिख रहा आध्यात्मिक

चिंतन वहीं रहता

ऐसा यदि बोलूं

प्यार क्यों करता


चूके जाएं चपड़ियाएँ

कौन है सहता

चाहत बन चकोर

मेरा संदेश तकता


शालीन सी शिकायत

शंखनाद सा विचरता

समर्पण ही साध्य

प्यार ऐसे निखरता


वह रहें शांत

उनका संदेश धीरता

पहल नहीं करतीं

भाव चटपटा बिखरता।


धीरेन्द्र सिंह

24.07.2025

18.41



बुधवार, 23 जुलाई 2025

साहित्य

 एक शब्द

ओढ़े हुए

अर्थ का वस्त्र,

ढूंढ रहा था

उपयुक्त भाव,


एक भाव

अभिव्यक्ति का

असर मिले

ढूंढ रहा था 

उपयुक्त शब्द,


संप्रेषण

टेबल पर

रखी चाय का

उड़ता महकता

वाष्प,


रचयिता

तल्लीनता से

रच रहा था

नव रचना

करता समृद्ध साहित्य,


साहित्य

पाठक मन में उड़ता

पुस्तकों में घुमड़ता

सितारों की तरह

टिमटिमा रहा है।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

19.13



मंगलवार, 22 जुलाई 2025

आत्मपैठ

मुझे मजबूर करती है मोहब्बत तुम्हारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


प्रणय के पल्लवन पर है तुम्हारी चंचलता

हृदय तुमको सराहा है लिए व्याकुलता

हृदय कहता है तुम ही हो नमन दुलारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


मुझे मालूम हैं समवेत सामाजिक चपलता

मेरी आत्मा करे प्रसारित निज धवलता

मोहब्बत कुछ नहीं कुछ चाहतों की तैयारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


वही फिर ठौर अपना वही उभरे चंचलता

दिलफेंक हूँ जो प्यार पर अक्सर लिखता 

आध्यात्मिक यात्रा में आत्मपैठ की खुमारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

08.31




शनिवार, 19 जुलाई 2025

रिश्ते

चेहरे प्रसन्न दिखें अंतर्मन रहे सिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


मोबाइल से बात है कम खुशी या गम

उड़ रहा है उड़ता जा देखते हैं अब दम

एक चुनौती प्रतियोगिता सब अंदर रिसते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


दोनों छोर तार की पकड़ जर्जर ले अकड़

एक बैठा देखते कब दूजा चाहे ले पकड़

मानसिक द्वंद्व है ललक मंद है खिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं में घुल रहे संबंध

खानदानी समरसता जैसे भटका विहंग

अविश्वासीआंच पर संबंध जलते सिंकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

19.44




शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

दीजिए

 उचित अब यही रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


उचित अब यही है रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


प्रत्येक में कुछ श्रेष्ठता और विशिष्टता

हर एक की अलग पहल तौर श्रेष्ठता

समाज न हो विचलित ध्यान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


दिल के कमरे में नित व्यग्र चहलकदमी

मस्तिष्क है घिरा होकर तिक्त अग्र वहमी

संताप है पदचाप बन आघात नचनिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


एक दिया लौ से जले अनेक दिया लौ

मानवता भ्रमित हो आपके रहते क्यों

आप में अपार शक्ति व्यक्ति मान भजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

03.50

बुधवार, 16 जुलाई 2025

सत्य

 सत्य को पसंद कर्म की अर्चना है

स्वयं की अभिव्यक्ति ही सर्जना है

आत्मद्वंद्व प्रत्येक प्राणी स्वभाव भी

सहजता क्रिया में आत्म विवेचना है


अभिव्यक्तियों की हैं विभिन्न कलाएं

प्रत्येक कला प्रथम आत्म वंदना है

अभिव्यक्ति को बांध जीता है जो भी

क्या करे मनुष्य वह सही संग ना है


खुलने के लिए खिलना प्रथम चरण

खिल ना सके मन जीवन व्यंजना है

मुरझाए पुष्प लिए झूमती टहनियां हैं

सब जीते हैं कहते जीवन तंग ना है


एक दृष्टि से सृष्टि को न देखा जा सके

विभिन्नता ही भव्य जीवन अंगना है

स्वयं को निहारना मुग्ध मन से जो हो

समझिए जीवन घेरे सूर्यरश्मि कंगना है।


धीरेन्द्र सिंह

17.07.2025

10.39




तीन चरवाहे

 चेतना के चाहत के तीन चरवाहे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


मनसा, वाचा, कर्मणा ही तीन प्रमुख

धरती, आकाश, पाताल जीव सम्मुख

इन तीनों में संतुलन बौद्धिकता मांगे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


यश, कीर्ति, तीर्थ में निमग्न चेतनाएं

काम, क्रोध, मोह से मुक्ति को धाएं

अभिलाषाएं तुष्ट लगें या मन में पागें

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


काव्य, कथा, संस्मरण के सब शरण

लेखन की होड़ में गुणवत्ता का क्षरण

साहित्य सुजानता से खुले हिंदी भागे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2025

17.53



मंगलवार, 15 जुलाई 2025

किसलिए

 हो आधा-आधा किसलिए

जरूरत से ज्यादा किसलिए

आपकी जागीर कब तलक

यह शान लबादा किसलिए


हर हलक में अनबुझी प्यास

सांस का इरादा किसलिए

जब तलक चल रहे है पांव 

थकन है पुकारा किसलिए


अपने-अपने हैं युद्ध सभी के

युद्धभूमि एक गवारा किसलिए

शस्त्र कभी शास्त्र लगते खास

रणकौशल वही सहारा किसलिए


चर्चा न हो समीक्षा भी नहीं

ऐसा व्यक्ति बेचारा किसलिए

अपनी धुन में जी रहे जितने

सोचे छोड़ा या दुलारा किसलिए।


धीरेन्द्र सिंह

15.07.2025

19.45







रविवार, 13 जुलाई 2025

अज्ञानी

 क्या सत्य लूट लेगा क्या धर्म की गहनता

यह मन बड़ा है छलिया मानव की सघनता

कर्म प्रचुर दूषित विचारों में भी नहीं दृढ़ता

व्यक्तित्व उलझा सा रह-रहकर है उफनता


बस स्वार्थ की ही दृष्टि अपनी जैसी हो सृष्टि

सभ्य, संस्कारी समझ खुद अन्य पर बरसता

ऐसे कई हैं लोग अभी सामान्य, नामी-गिरामी

न सोच का आधार जिसने सींचा वैसे बरसता


सब कुछ बदल रहा पर ऐसे लोग नहीं बदलते

जहां भी बैठे हैं वह परिवेश घुटन से कहरता

नई सोचवाला कर्म संग जुड़ा है अपनी माटी से

एक दृष्टांत नया हो अपने सत्य लिए फहरता।


धीरेन्द्र सिंह

14.07.2025

09.50


प्यार न तर्क

 प्यार करने को जी चाहे पर एज फर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बिन रिश्ते का यह बन जाता है रिश्ता

बन जाता रिश्ता तो प्यार हैं सिंकता

कौन भला है सोचता प्यार भी खुदगर्ज

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बातें अगर सुहाती हों भाव भरे उत्कर्ष

चैट करते समय शब्द-शब्द खिलें सहर्ष

फिर चाहत में स्थान कहां पा जाता कुतर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


कविता थी मेरी या थे मेरे काव्य विचार

मनोयोग से किया उन्होंने भाव सभी स्वीकार

कब कोई भा जाए कैसे बिना किसी शर्त

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

19.38





शनिवार, 12 जुलाई 2025

पहली बारिश

 जब पहली बारिश की बूंद मेरे चेहरे से टकराई

हवा महक दौड़ी सरपट भर अंग सुगंध अमराई

पहली छुवन तुम्हारी चमकी शरमाती सी घबड़ाई

बारिश प्यार का मौसम लगता नयन भरी चतुराई


चेहरा चिहुंक उठा यह कैसा गज़ब छुवन आभास

बूंद ठहर पल सरकी मृदु कोमल बोली ना दो दुहाई

सावन का यह अल्लहड़पन है पहली झमक बरसात

बदली डोली धरती बोली लो खिली प्रकृति अंगड़ाई


जब गहरे भावों से नयन तके मेरे चेहरे को अपलक

तब लगे बूंद टप्प गाल गूंजकर रोम-रोम सहलाई

तुम मिलती हो छा जाती घटा भाव बदलियां घनेरी

बारिश तो बस एक प्रतीक है तो मेरी सावनी दुहाई।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

08.57



लोकप्रियता

 यह लोकप्रियता यह साख यह प्रसिद्धियाँ

यह सक्रियता यह लाभ यह युक्तियाँ

कर्म का है पक्ष जिसको नकारना कठिन

व्योम में गुजर रही हैं असंख्य सूक्तियाँ


सद्प्रयास कुप्रयास दोनों की ही दौड़ बड़ी

व्यक्ति है दबा उलझा लिए मन नियुक्तियां

एक पहचान विधान बढ़ाए निज गुमान

शक्ति के मुक्ति की संयुक्त मन रिक्तियां


लक्ष्य की गंभीरता जड़ों की ओर खींचे

प्रशस्ति की गूंज बीच ख्याति अठखेलियाँ

कर्म है भ्रमित मूल ऊर्जा लगे शमित

धर्म के अध्याय में प्रचलित लोकोक्तियाँ


ए आई ऊपर से समेट रहा सृष्टि सजग

प्रौद्योगिकी प्रगति से चढ़ी व्यक्ति भृकुटियां

बुलबुले की ख्याति खातिर के प्रयत्नशील

प्रतिभा खंडित हो यूं बंटी बन टुकड़ियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

12.07.2025

13.47




शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

नैतिकता

 आदर्श

अंतर्मन का संग्रहित

सत्य

सिद्धांत

समय के ठोकरों से

निर्मित अनुभव

नैतिकता

सामाजिक संचालन का

अधिसंख्य सीकृति रूप,

ऐसे में डोलता है, कांपता है

उछलता है दिल

और चाहता है

अपने सोच अनुरूप

आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता;


ऐसे लोग जो नहीं समझ पाते

साहित्य की विभिन्न विधाएं

जो नहीं कर पाते विश्लेषण

देह-आत्मा-परमात्मा और

लोक-परलोक का

उन्हें अश्लील लगती है रचनाएं

आए वह मौन रहते हैं

खिलखिलाती रचना

साहित्य तुरही संग 

रहती है मुस्कराती,


आत्मा और परमात्मा की

बात करनेवाले लोग

देह को समझते हैं हेय,

आश्चर्य होता है कि

अनेक समूह छोड़

साहित्य मंथन

नैतिकता का पाठ

पढ़ा रहे हैं,


साहित्य ऐसे समूह में

घुट रहा है,

बौद्धिक लेखन अनजानेपन,

अज्ञानता 

साहित्यिक संभावना को

लूट रहा हैं।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.2025

20.07



मंगलवार, 8 जुलाई 2025

न जाने कब

 सोशल मीडिया

खत्म करे दूरियां

न जाने कब

परिचित लगने लगता है

एक अनजाना नाम

एक अनचीन्हा चेहरा

और बन जाता है

प्यार का धाम,


शब्द लेखन से

होती अभिव्यक्तियाँ

करती हैं

नव अनुभूति नियुक्तियां

मन होने लगता है

जागृत और सचेत,

होता है अंकुरित प्यार

दूरियों के मध्य,

रहते दोनों सभ्य,


बदलते परिवेश में

बदल रही सभ्यता

कुछ संस्कार

उत्सवी त्यौहार

और

मानवीय प्यार

ढंपी-छुपी चौखट

खुला हुआ द्वार

बदलने को आमादा

दीवारों की टूटन8

और

टूटता मन।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.20२5

06.21





जनक

 तुम भावनाओं की जनक हो

तुम कविताओं की सनक हो

तुम व्याप्त सभी रचनाकारों में

तुम लिए साहित्य की खनक हो


आप संबोधन लिख न सका, चाहा

"तुम में" अपनापन की दमक हो

याद बहुत आ रही, झकोरा बन

तुम रचना पल्लवन की महक हो


जो रच पाता, सज पाता वह तुम

जग गाता वह गीत ललक हो

रचनाकार की तुम्हीं कल्पनाशक्ति

शब्दों की गुंजित मनमीत चहक हो।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

09.29






चैटिंग

 चैटिंग करते-करते

जब तुम बिन बोले

भाग जाती हो, तो

थम जाता हूँ मैं,

तुम्हारे भागने से

नहीं होती है हैरानी

तुम्हारी अदा है यह,


समेट लेता हूँ

सभी शब्द चैटिंग के

और करता हूँ गहन

विश्लेषण उनका कि

किस वाक्य ने तुम्हें

दौड़ने पर विवश किया

और किस शब्द से

लजा, घबड़ा भाग गई,


बन जाती है

एक कविता और

इस तरह

अक्सर तुम

भावनाओं से गुजर

चैटिंग के शब्दों को

दे जाती हो

भाव दीप्ति।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

23.25





सोमवार, 7 जुलाई 2025

जब भी

 जब भी

देखता हूँ आपका फोटो

उभरती है

एक नई कथा जिसमें

उल्लास की

परत दर परत रहती है

छिपी कोई व्यथा

इसीलिए फोटो

करते रहता है

मुझसे बातें, यह बोलते

क्या छुपाएं, क्या बांटे,


नहीं देखता मैं

रूप का सौंदर्य और

नहीं रचता कोई रचना

आपकी फोटो पर

बस मैं पढ़ता हूँ नित

एक नया अध्याय

है मेरे व्यक्तित्व का स्वभाव,


अपने लेखन में

दबा जाती हैं जो भाव

बोल देते हैं फोटो

सहजता से,

बीत जाता है दिन

सहजता से,


गज़ब का प्रभाव

छोड़ जाती है

दुनियादारी के झंझावात से

ताकती, बातें करती

मुस्कराहट।


धीरेन्द्र सिंह

08.07.2025

07.08


रविवार, 6 जुलाई 2025

मन

 मन अगन लगन का गगन

मन दहन सहन का बदन


प्रतिपल अनंत  की ओर उड़े

प्रति नयन गहन रचे तपोवन

प्रतिभाव निभाव का आश्वासन

प्रतिचाह सघन का रचे सहन


मन हर चाह को है अर्पण

मन हर आह का करे मनन

मन चाहे मन में डूबना हर्षित

मन संग व्यक्ति बहे बन पवन


मन मुग्धित होकर कहे मनभावन

मन समझे ना यह पुकार लगन

मन मेरा लिए आपका मन भी

दें अनुमति मन करे मन आचमन।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

10.47



मन उपवन

 चेतनाओं की है चुहलबाजियाँ

कामनाओं की है कलाबाजियां

एक ही अस्तित्व रूप हैं अनेक

अर्चनाओं की है भक्तिबातियाँ


एक-दूजे का मन सम्मान करे

हृदय से हृदय की ही आसक्तियां

मन अपने उपवन खोजता चले

विलय मन से मन में हो दर्मियां


यूं ही कदम बढ़ते नही किसी ओर

कोई खींचे जैसे लिए प्यार सिद्धियां

एक पतवार प्यार की धार में चले

कोई सींचे जैसे सावन की सूक्तियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

06.32







शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

हिंदी

 चलिए हम मिलकर प्रयास करें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


एक आभा थी कहीं खो रही

हिंदी पत्रकारिता भी सो रही

हिंदी दैनिक में अंग्रेजी खास भरें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


यह सत्य है हिंदी देती नौकरी

अर्थ से हिंदी की रिक्त सी टोकरी

एम.ए. हिंदी में न छात्र, आस करें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


हिंदी और मराठी लिपि देवनागरी

बोल मराठी तू बोल गूंज इस घड़ी

महाराष्ट्र में मराठी भाषा साँच भरे

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें


हम सब लिखते हैं नहीं यह काफी

देवनागरी लिपि बढ़े यही है साफी

आपका साथ हो नव विश्वास भरें

मद्धम हो रही हिंदी विकास करें।


धीरेन्द्र सिंह

04.07.2025

18.19




गुरुवार, 3 जुलाई 2025

शब्द

 शब्द मरते हैं

तो मर जाती है भाषा

शब्द होते घायल

भाषा बन जाती है तमाशा,


शब्दों की  दुनिया में

नित नया होता है तमाशा

क्या करे अभिव्यक्ति तब

शब्द प्रयोग जैसे बताशा,


सबके होते अपने शब्द

पर शब्द ढूंढता नव आशा

सही प्रसंग, संदर्भ सही हो

शब्द योग है नहीं पिपासा


शब्द ब्रह्म है शब्द तीर्थ

शब्द समझ की ही जिज्ञासा

शब्द सहज सुजान नहीं

शब्द अजोड़ बने भाव कुहासा।


धीरेन्द्र सिंह

03.07.2025

22.40

















सोमवार, 30 जून 2025

नारी

 कभी देखा है जग ने

एकांत में अकेले

बुनते हुए वर्तमान को

भविष्य को

निःशब्द,


कभी देखा है पग ने

देहरी से

शयनकक्ष तक

बिछी पलकों का

गुलाबी आभा मंडल

निश्चल,


कभी देखा है दबकर

मुस्कराते अधरों को

कंपित नयन को

गहन, सघन, मगन

निःस्वार्थ,



आसान नहीं है

नारी होना, जो

कर देती घर का

जगमग हर कोना,

समर्पित, सामंजस्यता बनाए

निर्विवाद,


यदि यह देख लिया 

तो समझिए

बूझ गए आप

ईश्वरीय सत्ता

आराधना की महत्ता।


धीरेन्द्र सिंह

01.07.2025

08.51


अभिमत

 अभी मत अभिमत देना

आंच को निखार दो

तलहटी कच्चा हो तो

नहीं पक पाते मनभाव

नहीं चाहेगा कोई इसमें निभाव,


दहक जाने दो

लौ लपक जाने दो,


चाहत की तसली

खुली आंच पर चढ़ाना

गरीबी है तो

साहस भी है,

अग्नि का है अपना स्वभाव

तेज हवा, धूल-धक्कड़ में निभाव,


भावनाओं को तल जाने दो

सोंधा लगेगा थोड़ा जल जाने दो,


कितनी हल्की, कितनी सस्ती

होती है  तांबे की तसली, जो

पानी भी गर्म करती है

खाना भी पकाती है

शस्त्र का कर ग्रहण स्वभाव

प्रतिरक्षा का करती है निभाव,


तसली को तप जाने दो

सोचो, मत रोको, विचार आने दो।


धीरेन्द्र सिंह

30.06.2025

14.29





रविवार, 29 जून 2025

मुक्तिवाद

 एक बात पर संवाद कर निनाद

एक नाद भर विवाद पर आबाद

मेरे मन में चहलकदमी आपकी

चलता रहे यह और मैं रहूं नाबाद


एक युद्ध है जीवन एक खेल भी

एक मेल आपसे सतत जिंदाबाद

एक भेल कल्पनाओं का मिल भरें

मन प्लेट सा खाली है बिन स्वाद


सौंदर्य आपका कब से करे मोहित

अभिव्यक्तियाँ निखर करे नित याद

सावनी बदली सा मन घटा बन छाई

दुहाई जबर हो बस चाहे निर्विवाद


क्यों करें बातें क्यों दर्शाएं अपनापन

यह सोच छोड़िए बेचैन है दिल प्रासाद

एक प्रयास है सायास है एक आस है

आप पास हैं विश्वास हैं कहे मुक्तिवाद।


धीरेन्द्र सिंह

29.06.2025

19.14


बुधवार, 18 जून 2025

आँचल

 छुपा लो मुझे अपने आँचल में मुझको

मुझे माँ की आँचल की याद आ रही है

छोड़ो रिश्ते की दुनिया की यह सब बातें

कहो आँचल यह हां तड़पन छुपा रही है


नारी जब भी देखा मातृत्व शक्ति पाया

प्रेयसी हो तो क्या, मुक्ति बुला रही है

यदि न हो नारी किसी रूप में जुड़ी तो

लगे जिंदगी रिक्त झूले झूला रही हो


मैं सच कहूँ तो मान लोगी कहो ना

मातृत्व भाव आँचल घुला रही है

देहगंध ही भ्रमित कर बहकाए हरदम

कहो न निष्भाव आँचल बुला रही है।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

17.41

शाम की चर्चा

 विषय भी मेरा, वक्ता भी चयनित

संचालन खुद का, होता है नित


होते ही शाम सज जाते चैनल

कुछ सार्थक कुछ जोड़ें पैनल

भाव आक्रामक भाषा अमर्यादित

संचालन खुद का, होता है नित


श्रवण इंद्रियों की गहन हो परीक्षा

बोलते वक्ता रहें शोर उपजे सदीक्षा

संचालन प्रायः नहीं होता संयमित

संचालन खुद का, होता है नित


चल राजी चर्चा चैनल सभी व्यस्त

वही प्रवक्ता अपनी बातों में मस्त

सरदर्द हो तो कमजोर सहन शक्ति

संचालन खुद का, होता है नित


कई चैनल करते है बड़ा मनोरंजन

कई वक्ता खुद का करें अभिनंदन

कभी हास्य फूटता कभी मृदुल स्मित

संचालन खुद का, होता है नित।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

18.19

मंगलवार, 17 जून 2025

तत्व और भाव

 तत्व की तथ्यता यदि है सत्यता

भाव की भव्यता कैसी है सभ्यता

तत्व और भाव अंतर्द्वंद्व जीवन के

रचित जिस आधार पर है नव्यता


अपरिचित भी लगे सुपरिचित सा 

परिचित में ना मिले ढूंढे ग्राह्यता

अनजाने पथ पर पांव अथक चलें

राह परिचित प्रति कदम मांगे द्रव्यता


तत्व का एक रूप है जो जगभासी

भाव है अमूर्त गूढ़ अनुभवी तथ्यता

हर किसी का भाव सिंचित है पुष्पित

तत्व प्रदर्शन मात्र नेपथ्य की आर्द्रता


भाव यदि सक्रिय नहीं व्यक्ति हो कहीं

तत्व की सतह पर तलाशता अमर्त्यता

भाव ही तत्व का है मूल ईंधन जग में

भाव ही प्यार और प्यार में है सार्थकता।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

08.16




शब्द ले गया

 कोई मेरा शब्द ले गया भावों के आंगन से

निर्बोला सा रहा देखता झरझर नयना सावन से

कुछ ना बोली संग अपनी टोली चुप हो ली

यहां हृदय उत्कीर्ण रश्मियां लिपटी हवन पावन से


शुद्ध हो गयी निर्जल आंखें अकुलाई थी बाहें

सृजन नया कुछ सोचा था सूखा किस छाजन से

प्रणय आग भीतर नहीं सृजन कहां हो पाता है

दो पुस्तक मिल किए प्रकाशित मुद्रण की मांगन से


टोली टूटी वह भी टूटी सत्य कुछ लिख डाला

पुस्तक मेला वर्चस्व रहे बुक स्टाल के बाभन से

दोहा, माहिया लिखनेवाला मंच का लालच दे डाला

कौन कहां है पूछता प्यार के छिपे जामन से


शब्द मेरे और भाव भी मेरे नित सुनती थी मुग्धा

साहित्यिक जीवन बातें एक वर्ष चला पावन से

साहित्यिक प्रणय सुदूर से दो वर्ष चला नियमित

मेरे शब्दों से जहान बना ली उत्कर्ष पागन से।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2025

03.27



रविवार, 15 जून 2025

प्यार न बदला

प्यार ऐसे ही रहा है शुष्कता न सलवटें

यार जो एक बार हुआ छूटता न करवटें

वह हसीन वादियों को कल्पना के रंग दें

मन के बादलों में होती सावनी कबाहटें


जग चला जग छला है प्यार का वलवला है

जलजला में हैं प्यारमुखी पुष्पलता चौखटें

मन का सांखल चढ़ा उत्सवी मन काफिले

चाहत की संदूक में हैं समर्पित कुछ हौसले


क्या बदला कुछ न बदला बदल गया समय

प्यार ठाढ़े टुकटुकी अभिव्यक्ति के नव फैसले

अब भी शरमाहट भर सकुचाते बदन भवन

उन्माद सतही दौड़ता एहसास गहरा नौलखे।


धीरेन्द्र सिंह

16.06.2025

12.09




शनिवार, 14 जून 2025

लेखन छेड़खानी

यूं ही कुछ लेखन लिए कद्रदानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी


आवश्यक नहीं पहल करे रचनाकार

कुछ प्रबुद्ध टिप्पणी शाब्दिक चित्रहार

शब्दों की भावहोली रचती नव कहानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी


उच्च बौद्धिकता में होती छेड़-छाड़

शाब्दिक सुंदरता भावों के फले ताड़

लूटते हैं लोग करते शब्दों की निगरानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी


ऐसी चंचलता, चपलता चतुर लेखन

किसी भी समूह का पुलकित संवेदन

लेखन की लौकिकता लेखन जुबानी

अक्सर करता है लेखन छेड़खानी।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2025

18.33



 

शुक्रवार, 13 जून 2025

आपका लेखन

 लिख-लिखकर लुभाई हैं, हिसाब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


परिपक्वता के लेखन में है अद्भुत मिठास

भाव भव्यता के खेवन में है शब्दयुक्त ठाठ

अभिव्यक्त हो प्रखर अनुभव नवाब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


आपके लेखन में मेरी भावनाओं का गुबार

सुंदर शब्द आपके है और लिपटे सुविचार

प्रश्न मैं उत्तर आप हैं उपयुक्त जवाब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


प्रत्यक्ष कैसे बोलूं सामाजिक मर्यादाएं हैं खड़ी

आपका लेखन है जादुई एक मंत्र की पड़ी

मंत्र पढूं कान फूंक वह आफताब दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए


पढ़ना है मेरी आदत हर व्यक्तित्व है पुस्तक

जब से रहा पढ़ आपको हर शब्द है दस्तक

लिखते रहिए करते मोहित विवाद दीजिए

सभी पात्र हों प्रसन्न वह किताब दीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2025

06.26




गुरुवार, 12 जून 2025

बोइंग अहमदाबाद

 सब चैनल की एक ही बातें

बोलें बाद में पहले तो जांचे


अहमदाबाद ड्रीमलाइनर हादसा

अग्निपाश 242 आत्मा आसका

दुर्घटना या षड्यंत्र मन नाचे

बोलें बाद में पहले तो जांचे


संयत सुलझा संशोधित समाचार

एक जीवित यात्री मिला चमत्कार

कुछ यात्री और हों जीवित मांगे

बोलें बाद में पहले तो जांचे


इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण कर है हमला

एक भाव कहे लोग बोलें पगला

बोल ऐसा भय यूं न टांगे

बोलें बाद में पहले तो जांचे


मेरी भी संग करोड़ श्रद्धांजलि

यात्री परिजन संग हों बजरंगबली

उड़ा जहाज कैसे मौत नाचे

बोलें बाद में पहले जांचे।

🙏🏻

धीरेन्द्र सिंह

12.06.2025

18.57



बुधवार, 11 जून 2025

शब्द कर्म

 चेतना को चुगने का प्रयास हो रहा

जो भी हो रहा है सायास हो रहा

उन्नत हैं बीज खेत लहलहा उठेंगे

खेतों में बीज न अनायास बो रहा


स्व विवेक मरेगा तो मरजायेगा स्वधर्म

वह मारने पर तुला है प्रकाश मिलेगा

तन मार गया तो मिलते हैं तन सगर्व

स्व आधार मारता है हताश मिलेगा


अब कर्म में बातों को ढालने लगे हैं

कर्मठता से ही अपना आकाश मिलेगा

सुंदर सुघड़ शब्द से बातें तो हैं आसान

जब धुनेगा रुई, कोमल एहसास मिलेगा


अस्तित्व के लिए सौम्य व्यक्तिव क्यों

शौर्य हो तो व्यक्तित्व उल्लास खिलेगा

कर्मों में शब्द ढलने से मिलता निदान

गुमान विगत का रहा तलाश मिलेगा।


धीरेन्द्र सिंह

12.06.2025

05.54

मंगलवार, 10 जून 2025

आंतरिक ऊर्जा का उन्नयन धार है

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है


धरा से व्योम तक भावना का अर्चन

प्यार की छवि दिखे वायु बने दर्पण

ऐसे योगियों समक्ष खुले सब द्वार हैं

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है


सामाजिक बंधन कहे प्यार है चंदन

सामाजिक समर्थन प्यार वही वंदन

वैवाहिक रीतियों में नियम गुबार है

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है


धर्म कभी कर्म कभी सामाजिकता

प्यार नियमबद्ध करे क्या आतुरता

बिरादरी से बाहर ब्याह नहीं शुमार है

प्रचंड वेगवाहक होया जब प्यार है


प्यार नहीं रुकता प्रेमी प्रतिदिन आदि

नित्य मिलान नित्य चर्चा पल-पल संवादी

दूसरे से ब्याह नहीं देता प्यार झंकार है

प्रचंड वेगवाहक होता जब प्यार है।


धीरेन्द्र सिंह

11.06.2025

05.46


रविवार, 8 जून 2025

नीना गुप्ता

 नीना गुप्ता

बीते

66वें जन्मदिवस की

हार्दिक शुभकामनाएं,

पूर्ण अपरिचित हैं

एक-दूसरे के लिए

बस इतना जाना

मीडिया ने जो बताया,


आजकल भी 

मीडिया बता रही है

आपके 66वें जन्मदिन का

केक काटता फोटो

कुछ लोग कहें हो, हो,


सोशल मीडिया

एक वैचारिक प्रवाह है

जहां स्वतंत्र है अभिव्यक्ति

करे कोई भी व्यक्ति

चीखता, चिल्लाता

विचार अपने सत्य बतलाता

निरंतर कहते जाता

जैसे सरिता प्रवाह में

खर-पतवार है बहते जाता,

वैचारिक और सामाजिक प्रवाह

धारित किए आप

चल रही हैं कलकल

एक सरिता की तरह, जिसमें

कतिपय मृत विचार और तर्क

बह रहे पकड़ आपका संग,


आप यूं ही 

प्रवाहित होते रहिए

इतिहास आपके सम्मान में

अपने रिक्त रखे पृष्ठों में 

आपकी जिंदगी समेटने को

सक्रिय है

क्योंकि

अपनी शर्तों पर

एक पूरा जीवन जी पाना

मात्र साहस नहीं बल्कि

एक विलक्षण दृष्टिकोण है।


धीरेन्द्र सिंह

08.06.2025

19.54







व्यक्तित्व

 लोग झूठ बोलते हैं शायद डर गए हैं

व्यक्तित्व रुपहला भीतर से मर गए हैं

देखा है जमाने की भीतर की दुनिया

बाहर क्षद्म रूप और वह तर गए हैं


एक परदा जरूरी है जहां कुछ पड़ा

हरे कपड़े से बालकनी भी ढक गए है

हर कुछ छुपाना भयभीत है जमाना

निजता के कमरे क्या-क्या भर गए हैं


मन दबा आवाज दबी हौसला लगे दबा

रीढ़ की हड्डी दबी यूं ही अड़ गए हैं

कहते हैं शांत रहिए समय होगा परिवर्तित

हम क्या रट लिए और क्या पढ़ गए हैं


उन्माद न दबंगता अन्याय का हो विद्रोह

शालीनता में शांत गलत राह बढ़ गए हैं

साहित्यिक, सामाजिक सुधार आवश्यक

धूल-धक्कड़, जंग व्यक्तित्व चढ़ गए हैं।


धीरेन्द्र सिंह

08.06.2025

18.10




शनिवार, 7 जून 2025

चर्चा

 साहित्य का विकास एवं उन्नयन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन


पढ़ लिया फिर लाईक या टिप्पणी

ऐसे विभिन्न रचनाओं पर दो घड़ी

प्रश्न पूछिए जहां संशय भरे गहन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन


पाठक वर्ग होता है साहित्य चितेरा

उनके दिशानिर्देश रचें साहित्य सवेरा

रचना पर हो चर्चा रहे रचना मगन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन


कविता पर मिले कविता में प्रतिक्रिया

रचना के शब्द, वाक्य पर प्रश्न क्रिया

कितना सुखद होता लेखन करे मनन

सक्रिय पठन हो दीप्ति भरे गगन।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2025

22.43




शुक्रवार, 6 जून 2025

लाईक कमेंट्स

 लेखन कितना क्षुब्ध हो गया

चाहे हरदम खुश इठलाने को

लाईक, टिप्पणियों के अधीन

सर्जना लगे सुप्त बिछ जाने को


रचनाकार सशक्त सजीव संजीव

रचना मन अंगना खिल जाने को

मिलते रहते पाठक और प्रशंसक

रचना गुणवत्ता ओर खींच जाने को


सर्जन का है कर्म-धर्म अभिव्यक्ति

लेखन का स्वभाव मन छू जाने को

पाठक प्रशंसक के अधीन यदि लेखन

प्रथम संकेत है लेखन चुक जाने को


एक विचार हो एक प्रवाह हो लेखक

है कर्म निरंतर लेखन जग जाने को

एक चुम्बक है लेखन सबको ले खींच

लाईक, कमेंट्स में क्यों उलझ जाने को।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2025

05.39





गुरुवार, 5 जून 2025

उम्र

 प्यार यदि देह है फिर क्या नेह है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


एक उम्र आते ही कहते बस हुआ

ईश्वर की भक्ति करो उम्र को छुआ

देह तो तब भी प्यार करना खेद है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


प्यार पर लिख रहे उम्र भी तो देखिए

लोग क्या कहेंगे गरिमा के जो भेदिए

लेखन में पड़े कुछ करते नहीं गेय है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है


अधेड़ उम्र में प्यार क्यों हैं करते

भक्ति लो मुक्ति लो अचानक हैं मरते

परलोक की सोचें देह नश्वर विदेह है

कुछ भी संभव कहीं भेद लिए देह है।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2025

10.21


बुधवार, 4 जून 2025

क्रिकेट हादसा

 गेंद लेकर दौड़ता एक गेंदबाज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


गेंदबाज, बल्लेबाज और क्षेत्ररक्षक

एक विजयी दूजी टीम बनी समीक्षक

बंगलुरू स्टेडियम में जश्न की आवाज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


आरसीबी टीम अठारह वर्ष बाद जीत

स्टेडियम द्वार भगदड़ निकली कई चीख

स्टेडियम में  चलता रहा जश्न लिए नाज़

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


मर गए घायल हुए कई क्रिकेट प्रेमी

कौन दोषी मुक्तभोगी था संयोग नेमी

चैनलों के वीडियो दर्शाते चूक व काज

बल्ला चाहे गेंद को दे गति साज


ना रुकी भगदड़ में मौत व भारी चोट

स्टेडियम में उत्सव बाहर व्यवस्था खोट

क्रिकेट जगत का दुखदाई हादसा माँज

बल्ला चाहे गेंद को गति दे साज।


धीरेन्द्र सिंह

04.06.2025

18.48

सोमवार, 2 जून 2025

अर्थपूर्ण

 एक बात कहूँ आप यूं ना सोचिए

हर बात अर्थपूर्ण कहां होती है

एक समीक्षक की तरह ना देखिए

हर नात गर्भपूर्ण कहां ज्योति है


समझौता ही एकमात्र है विकल्प

जिंदगी स्वप्न जैसी कहां होती है

शोधार्थी की तरह जारी रहे शोध

बंदगी, यत्न ऐसी जहां रीति है


टूटते तारे हों तो है चमकता रिश्ता

रोशनी खास अब यहां कहां होती है

अंधेरा भर रहा धुआं बन सीने में

सुलगन अब कहाँ आग लिए होती है


हर चेहरे पर संतुष्टि का है मेकअप 

चेहरे पर खिली चांदनी कहां होती है

कहिए कि नकारात्मक सोच का लेखन

चहकना सीख ले जिंदगी वहीं होती है।


धीरेन्द्र सिंह

03.06.2025

09.12



रविवार, 1 जून 2025

चश्मा

 तुम भी मुझे उतार दी चश्मा की तरह

लेन्स कमजोर लग रहा था हर शहर


कहा कि साफ कर लो धूल है बहुत

नई चाह में बीमार सा घूमे दर बदर


मारा कुछ छींटे धूल लेंस से तो हटे

गर्दन घुमा लिया तुमने जैसे हो डगर


हर तन कमजोर हो अक्सर नहीं होता

मन भटक चला था बिना अगर-मगर


क्या कर लिया हासिल कुछ तो न दिखे

बवंडर से जा जुड़े उड़ान के कुछ पहर


लिख रहा हूँ तुमको याद जो आ गयी

चश्मा के लेंस संग झांकती वही नजर।


धीरेन्द्र सिंह

02.06.2025

09.55



यह लोग

 यह लोग जो संस्कार की बात करते हैं

जाने शोर किस अधिकार की करते हैं


प्यार यदि छलक सतह पर है निखरता

यही लोग प्यार का धिक्कार करते हैं


यह कभी लगा नहीं शुष्क मन इनका

मनोभावों में यह भी श्रृंगार करते हैं


सारा संस्कार प्यार रचित बातों पर ही

संस्कार बांधकर क्यों व्यवहार करते हैं


भ्रष्टाचार, झूठ बोलना, डीपी गलत लगा

व्यक्तित्व मुखौटा अस्तित्व नाद करते हैं


ईश्वर भी है प्यार तो प्यार भी है ईश्वर

नश्वर बारंबार नव ईश्वर पुकार करते है।


धीरेन्द्र सिंह

01.06.2025

13.00



शनिवार, 31 मई 2025

साहस

 मैं भी चला था दौर में देखा न गौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


अब भी उन्हीं जैसा दिखे तो धड़के दिल

संकोच गति को बांधे मन चीखे आ मिल

मैं अपनी धुन में वह अपने उसी तौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


यह बात नहीं कि वह समझीं न इशारा

एक बार उनकी राह देख मुझको पुकारा

थम गया, संकोच उठा, घबराया कौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


प्यार भी हिम्मत, साहस, शौर्य के जैसा

कदम ही बढ़ ना सके तो पुरुषार्थ कैसा

आज भी वही पल ठहरा हांफते शोर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से।


धीरेन्द्र सिंह

31.05.2025

17.44



शुक्रवार, 30 मई 2025

बहाना

 सीखा बहुत न सीख पाया वैसे निभाना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना


आप अभिनेत्री हैं या जीवन की हैं नेत्री 

एक दुनिया आपकी जिसकी आप हैं क्षेत्री 

शब्द भी है धुन भी आपका रहे तराना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना


है ज्ञात कुछ तो गड़बड़ आप कर रहीं

तलाशते रहे न आधार न मिले जमीं

यहां-वहां जहां-तहां भोलेपन में घुमाना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना


कुछ तो विशेषता आपमें है ईश्वर प्रदत्त

बातों में आपसा भला है कौन सिद्धहस्त

हारता है पुरुष फिर भी बना रहता दीवाना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना।


धीरेन्द्र सिंह

30.05.2025

13.45



बुधवार, 28 मई 2025

मौलिकता

 कविताओं में

शब्द, अभिव्यक्ति का

जितना हो प्रयोग

उतना ही सुंदर

बनते जाता है

साहित्य का सुयोग,

समय संग

व्यक्ति का अभिन्न नाता

दायित्व अंग

समय संग जो निभाता,

रचता वही नव इतिहास

परंपरा के जो अनुयायी

बने रहते समय खास,


लाइक और टिप्पणी ललक

हद से जब जाए छलक

असमान्यता तब जाए झलक

लेखन आ जाए हलक

विचारिए

लेखन आशीष मिला

लेखन को संवारिए,

यही दायित्व है

निज व्यक्तित्व है

नयापन लेखन में पुकारिए,


इस लेखन साधना के

हैं विभिन्न योगी

नित करते रचनाएं

बन अपना ही प्रतियोगी

बिना किसी चाह

बिना किसी छांह

रचते जाते हैं

जो लगा है सत्य

उसीको गाते हैं,


इसकी रचना, उसकी लाईक

उसकी रचना, इसकी लाईक

लेनदेन साहित्य नहीं

लेखन नहीं मंच और माइक,

लेखन साधना है कीजिए

नए शब्द, भाव दीजिए

पुष्प खिलेगा

उडें सुगंध

तितली, भौंरे लपकते

करें पुष्प पर अपना प्रबंध।



धीरेन्द्र सिंह

29.05.2025

10.53


ताल

 आप ऐसे चमकें जैसे अँजोरिया

संवरिया का ताल, कहे गोरिया


मन महकाय के सपन दे बैठी

रात बहकाय के अगन दे ऐंठी

अंखिया जागत, होती जाय भोरिया

संवरिया का ताल, कहे गोरिया


मगन लगे कब खबर नहीं

अगन कहे अब सबर नहीं

तपन सघन लगे चहुँ ओरिया

संवरिया का ताल, कहे गोरिया


इतनी चमक नहीं समझ पाएं

कौन लपक चमक जी हर्षाए

समझ सके ना कोई मजबूरियां

संवरिया का ताल, कहे गोरिया।


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2025

17.53



सोमवार, 26 मई 2025

आप

 आज बहुत दिन बाद

नींद खुलते ही

प्रतीत हुआ कि

प्रणय की बदलियां

मन में उमड़-घुमड़

संवेदनाओं को जगा रही हैं,

जग तो जाता हूँ

याद आती हैं

जब आप ऐसे,

जैसे चटकी हो कली

फूल खिला हो जैसे,

जिसकी सुगंध

तन को अधलेटा कर

बंद कर पलकें

करती रहती हैं सुगंधित

आप से जुड़ी कल्पनाओं को,


बदलियां सेमल की रुई सी

कोमल स्पर्श कर

आपकी अंगुलियों सी

निर्मित कर रही हैं

पुलकित झंकार,

व्योम में भी 

बदलियां बूँदभरी

बरसने को तत्पर दिखीं,

मौसम बरसाती हो गया,

बंद पलकें

एक अलौकिक आनंद से

अभिभूत

कल्पनाओं की

घनी बदलियों में

आप संग करता रहा

उन्मुक्त विचरण,


जीवन के दायित्वों ने

कर दिया विवश

खुल गयी पलकें

और बरसाती मौसम में

आज फिर आप

मेरी कविता से लिपट गईं।


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2025

06.30



शुक्रवार, 23 मई 2025

चलो

 शक्ति से शौर्य से लुभाते चलो

लोग चलें न चलें भुनाते चलो


प्यार, श्रृंगार, अभिसार से पार

कामनाएं मृदुल भाव की न धार

अपनी चाल हो अन्य में ना ढलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो


नारी बिंदिया से उदित होता सूर्य

नारी प्यार ऊर्जा करती है उत्कर्ष

आज नारी हुंकारी हाँथ ना मलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो


प्रणय अब लग रहा प्रसंगहीन

कब तक निश्छलता छल अधीन

जन, ज़र, ज़मीन प्रतिकूलता तलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो।


धीरेन्द्र सिंह

24.05.2025

10.15


गुरुवार, 22 मई 2025

आप और बारिश

 बरसात आती है

जैसे आती हैं आप

घटाएं आती हैं

जैसे आपकी यादें,

वह तपिश क्षीण हो जाती

जैसे बादलों से ढंका सूर्य

और परिवेश पुलकित हो

बारिश की बूंदों की करें प्रतीक्षा

जैसे मेरे नयन ताकें

आपकी कदमों की आहट,

कभी सोचा है आपने ऐसा ?

ना ही बोलेंगी, सकुचाती,


घटाएं भी तो चुप

अपने में सिमटी

ठहरी रहती हैं स्थिर

धरा को देखती

और मैं सोचता हूँ

कब मेरी दृष्टि समान

देख ली बदलियां आपको

और चुरा लीं

आपकी अदा जैसे

मेरे कुछ प्रश्नों पर

रहती हैं ठहरी मौन

और चली जाती है प्रतीक्षा

अंततः थक कर,


अचानक तेज हवाएं

बिजली का कड़कना

और झूमकर 

बदलियों का बरस जाना

बस आपकी इसी मुद्रा हेतु

पुरुष एक साधक की तरह

रहता है नारी आश्रित

जहां झूमने के पल होते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

23.05.2025

09.45


युद्ध

 लिख ही देता हूँ कलम ना थरथराती

नियमावली के अनेक प्रावधान है

मनुष्यता ही मनुष्यता का करे दमन

दर्द व्यंजित धरा का क्या निदान है


प्रेम की बोली या कि अपनापन कहें

प्यार की स्थूलता पर गुमान है

हृदय की समग्रता सूक्तियों में ढलें

जो सीखा है उसी का कद्रदान हैं


कौन अपना कौन पराया पहचानना

अपने ही तो पराजित मान करें

स्थानीय ऊर्जा का करते विलय

कीमतों पर बिक अभिमान करें


संघर्ष हर पग सब संघर्षशील

संघर्ष में युद्ध का कमान चले

घर में अपने बंग ढंग प्रबंध

कैसे कहें इसमें विद्वान ढले


काग चेष्टा बकुल ध्यानं समय

श्वान निद्रा का सम्मान करें

समय के अनुरूप सृष्टि भी चले

राष्ट्रभक्त हैं मिल राष्ट्रगान करें।


धीरेन्द्र सिंह

22.05.2025

16.12



अभ्यास

 चेष्टाएं प्रबलता की सब करें

अनुभवी अभ्यासी ही यूं चलें

अन्य अंधी दौड़ में उलझे कहें

साधक बन क्यों एकलक्षी गलें


जो चमकता दिखे, है अभ्यास

वर्ष कितने गुजरे इसी वलबले

शीघ्रता में कुछ मिला न कभी

गंभीरता जहां क्या करें मनचले


कौन क्या देख रहा स्थान कहां

देख पाना भौगोलिक भाल धरे

एक व्योम पर है कई दृष्टियाँ

व्योम सबको एकसा ना दिखे


प्रेम पर समाज पर खूब लिखे

हर रचना में कुछ नया दिखे

भाव-शब्द मनतार जिसका कसा

अभिव्यक्तियाँ झंकार नव ले खिलें।


धीरेन्द्र सिंह

22.05.2025

12.49



मंगलवार, 20 मई 2025

चाय या तुम

 झुकती लय टहनियां वाष्पित झकोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


एक घूंट चाय सा लगता है संदेशा

गर्माहट भरी मिठास अनुराग सुचेता

गले से तन भर झंकृत हो पोरे-पोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


अंगुली तप जाए अधर उष्णता दास

चाय रहती तपती करती चेतना उजास

रंगमयी कल्पनाएं संग चाय दौड़े-दौड़े

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


हो जिद्दी बारिश, गर्मी हो या सर्दियां

हल्का हुआ विलंब छा देती हो जर्दियाँ

कोई न बीच हमारे चुस्कियां मोरे-मोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे।


धीरेन्द्र सिंह

21.05.2025

11.01



नारी

 आप मन प्रवाह की तीर हैं

कल्पना प्रत्यंचा अधीर है

स्वप्न गतिशील सुप्त गुंजित

संकल्पना सज्जित प्राचीर है


सौम्यता से सुगमता संवर्धित

उद्गम उल्लिखित पीर है

सौंदर्य को करती परिभाषित

कौन कहता मात्र शरीर हैं


स्वेद को श्वेत कर सहेजती

भेद में प्रभेद लकीर है

सत्य लुप्त कर दिया गया

तथ्य तीक्ष्णता की नीर हैं


विश्व वृत्त की कई क्यारियां

नारियां हीं नित्य वीर हैं

पुरुष एक मचान सदृश रहे

श्रेष्ठता युग्म की तकदीर हैं।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

19.46




प्रतीक्षा

 नयन बदरिया पंख पसारे

पाहुन अगवानी को धाए

अकुलाहट से भरी गगरिया

मन छलकत नेह भिगाए


साँसों की गति अव्यवस्थित

स्थिति खुद को अंझुराए

गाय सरीखा उदर भाव है

चाह राह तकते पगुराए


गहन सदीक्षा मगन प्रतीक्षा

अगन द्वार खूब सजाए

युग्म हवन कोमल अगन

हृदय थाप की नई ऋचाएं


संगत भाव मंगत छांव

पंगत में लगते कुम्हलाए

झुंड चिरैया उड़ती हंसती

पाहुन आए लखि बौराए।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

16.00



सोमवार, 19 मई 2025

क्या करता

 मन मसोसकर जीवन  है विवशता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप बाग-बाग सी महक-महक गईं

अभिलाषाएं प्यार की मचल लुढ़क गई

अप्रतिम हो व्यक्तित्व मन है कहता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप आब-आब हैं शवाब ताब हैं

सगुन लक्षणी खिला माहताब हैं

मनभावनी हैं भाव झरते ही रहता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप लज्जा-लज्जा हैं प्यार का छज्जा

बच्चा सा दुबका प्यार अरमानी मस्सा

कदम बढ़ चला अब रुके नहीं रुकता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप गर्व-गर्व हैं संगत का पर्व है 

मर्त्य हर प्रयास का भी उत्सर्ग हैं

जीवन प्यासा ले चाहत है सिहरता

कहावत सही, मरता न क्या करता।


धीरेन्द्र सिंह

19.05.2025

18.23