देह मंदिर सा लगे है
नेह लगे अति समीप
भावना की हवा बहे
हृदय लौ बन दीप
कल्पनाओं की बजे घंटियां
कामनाओं के भजन गीत
अर्चना थाली सा मन बने
वर्जनाएं मिटें मिल दीप
ओस सा मुख निर्मल
कजरारी आंखों की रीत
गाल डिम्पल गहन गूढ़
चेतना चपल मिल मीत।
धीरेन्द्र सिंह
09.11.2025
11.38
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