धुंध और गहरा हो रहा है
जीवन फिर भी
नहीं थमा है,
यह जीवन दृश्य है
व्यक्ति फिर भी
नहीं रमा है,
संबंधों की सर्दियां
ऐंठ रही है उन्मत्त
गर्माहट संघर्षरत है
तापमान संतुलन में,
एक अलाव जल नहीं रहा
सुलग रहा है
जिसका उठता धुआं
धुंध की कर रहा सहायता,
व्यक्ति इन जटिलताओं में
बना रहा पुष्पवाटिका
चहारदीवारी के बीच
और सोच रहा कि
जो खटखटाएगा
प्रवेश पाएगा,
सब कुछ गोपनीय है
पुष्पवाटिका भी
और सुगंध भी,
संबंधों की सर्दियों
गहराता कोहरा
अलाव से उठता धुआं
सब अस्पष्ट सा, अनचीन्हा सा
फिर भी व्यक्ति
हथेलियों में ऊष्मा छुपाए
भित्ति सा खड़ा है
ठिठुरते
एक पहल की
प्रतीक्षा में।
धीरेन्द्र सिंह
07.11.2025
05.22
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