गुरुवार, 11 सितंबर 2025

तुम जुड़ो

 हम ऐसे बंधनों को उकेर कर जिएं

मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए


कामनाएं पढ़ तुमको कुलबुलाती हैं

अपेक्षाएं भाव मृदुल संग बुलाती हैं

जो जँच रहा बिन उसके कैसे जिएं

मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए


आसक्ति की बाती पढ़ तुमको जल उठी

नई रोशनी जली चिंगारियां मचल उठी

एक तपिश भरी कशिश बवंडर लिए हिए

मेरा हृदय बनो तुम जुडो बन प्रिए


कोई न देखता कोई न सोचता अब है

दूरियां भी व्यक्ति मिलता अब कब है

फिर भी मिलन चलन लोग ऐसे जिएं

मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए।


धीरेन्द्र सिंह

11.09.2025

23.08

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