हम ऐसे बंधनों को उकेर कर जिएं
मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए
कामनाएं पढ़ तुमको कुलबुलाती हैं
अपेक्षाएं भाव मृदुल संग बुलाती हैं
जो जँच रहा बिन उसके कैसे जिएं
मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए
आसक्ति की बाती पढ़ तुमको जल उठी
नई रोशनी जली चिंगारियां मचल उठी
एक तपिश भरी कशिश बवंडर लिए हिए
मेरा हृदय बनो तुम जुडो बन प्रिए
कोई न देखता कोई न सोचता अब है
दूरियां भी व्यक्ति मिलता अब कब है
फिर भी मिलन चलन लोग ऐसे जिएं
मेरा हृदय बनो तुम जुड़ो बन प्रिए।
धीरेन्द्र सिंह
11.09.2025
23.08
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