व्यक्तिवाचक रचना से बिदक जाते हैं
साहित्य पाठक भी क्यों ठुमक जाते है
साहित्य पाठक भी क्यों ठुमक जाते है
आदर्शवादिता लगे उनकी धरोहर है
कैसे लेखन ऐसे में ना दहक पाते है
प्रथम पुरुष में लिखना क्या गलत है
बेमतलब का मतलब लहक जाते हैं
चरित्र चाल कर रखने की चीज कहां
जो लिखते हैं चालकर लिख पाते हैं
एक दीवार तक लेखन को जोडनेवालों
जो लिखते हैं उसी भाव महक जाते है
प्रणय रचना को प्रस्ताव समझना कैसा
क्यों रचना में व्यक्तिवादी झलक पाते हैं
भाव दबाकर लिखें आपातकाल है क्या
साहित्य रचते जो यथार्थ कुहुक जाते हैं।
धीरेन्द्र सिंह
13.10.2025
12.23
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें