शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

तटस्थ

तटस्थ हो घनत्व को सदस्य दीजिए
निजता है पल्लवित राजस्व दीजिए
गुटबंदियां चापलूसी में हैं सन रही
कितने छोड़ रहे साथ महत्व दीजिए

अपने में दम तो बातों का क्या वहम
कारवां में सब एक यह कृतित्व कीजिए
रिश्तेदारी की खुमारी है तब दुश्वारी
जब प्रियजन समूह हैं व्यक्तित्व दीजिए

प्लास्टर लगे उखड़ने किसका प्रभाव है
किसका प्रभुत्व है यह तत्व उलीचिए
कुछ ईंटें सरकी हैं बात हद में ही है
दीवारों की खनक रहे शुभत्व कीजिए

कुछ टूट रहा है कुछ छूट रहा है
क्या कुछ लूट रहा है संयुक्त कीजिए
निर्भीकता से बोलता साहित्य हमेशा
मर्जी आपकी भले अलिप्त कीजिए।

धीरेन्द्र सिंह
10.11.2025
17.16

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