शनिवार, 30 अगस्त 2025

चल बैरागी

 संकुचित मर्यादाएं

दबंग संस्कार

व्यथित मनोकामनाएं

भूसकल त्यौहार


हर किसी का बाड़ा

लुकछुप व्यवहार

किसका किसपर उधार

कहां कब अख्तियार


सब जिएं ऐसे ही

जीवन लौ को दे बयार

सत्य उभरता ही कहाँ

सत्यवादी यह संसार


अकुलाहट विश्राम चाहे

सुखकर गोद की दरकार

चल बैरागी ठौर वही

जहां चिंगारियों का चटकार।


धीरेन्द्र सिंह

31.08.2025

06.31

शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

कर्म का फल

 कर्म अब धर्म, अर्थ, भाषा आधारित

कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित


सत्कर्म है संबंधित समाज, देश नियम

कर्म व्यक्तिजनित हतप्रभ अधिनियम

पाप-पुण्य समायाधीन जग में संचारित

कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित


जैसा कर्म वैसा फल प्रबुद्ध समाज का

भ्रष्टाचार जहां वहां परिणाम गजब का

मानवता सृजित निरंतर विकास पगधारित

कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित


कलयुग का नाम ले कर्मधर्म कहें कंपन

मानवयुग उलझन में हो कहां समंजन

सब चले राह चले बांह छाहँ ना निर्धारित

कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित।


धीरेन्द्र सिंह

29.08.2025

13.39







गुरुवार, 28 अगस्त 2025

अधर आंगन

 अधर के आंगन में अनखिले कई शब्द

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध


नयन की गगरी से भाव तरल कभी गरल

अगन की चिंगारियां हवा संग रही बहल

अधर आंगन में चाहत जैसे छुईमुई निबद्ध

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध


चल पड़े भाव राह उलझा जो संग बहेलिया

खिल पड़े घाव आह सुलझा दी तंग डोरियां

कुछ भ्रम भी उभरते हैं जैसे अलगनी प्रारब्ध

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध


अधर गुप्त कंपन समंजन में पाए भंजन

आंगन हवा बहे प्रयास किमनरूप प्रबंधन

आत्मिक ऊर्जा लहक लपक छुई आबद्ध

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध।


धीरेन्द्र सिंह

28.08.2025

18.3


बुधवार, 27 अगस्त 2025

पधारे मेरे घर

 प्रगति सकल चिंतन हो एक सामाजिक गणवेश

ऐसी बोली बोल रहे हैं पधारे मेरे घर श्री गणेश


सज्जा मनोभाव की करने का है यह एक प्रयास

गौरव है प्राप्त होता श्री गणेश करें गृह निवास

दीवारों से पूछिए कैसा हो जाता है अद्भुत परिवेश

ऐसी बोली बोल रहे हैं पधारे मेरे घर श्री गणेश


अपनी अनुभूतियों का अब और ना करूँ बखान

गणेशोत्सव परंपरा के सृजनकर्ता हैं अति महान

श्री गणेश इस अवधि में देते आशीष शक्ति विशेष

ऐसी बोली बोल रहे हैं पधारे मेरे घर श्री गणेश


करबद्ध खड़ा हूँ वचनबद्ध आबद्ध स्वयं से सम्बद्ध

गणपति विराजे हैं तो भाव से हूँ आपूरित निबद्ध

आपका भी मंगल हो दंगल अब जीवन का संदेश

ऐसी बोली बोल रहे हैं पधारे मेरे घर श्री गणेश🙏🏻


धीरेन्द्र सिंह

27.08.2025

16.28

सोमवार, 25 अगस्त 2025

गणेश

 हर गली हर सड़क हर बिल्डिंग लिए एक भेष

आ गए हैं मुंबई की धड़कन, ऊर्जा लिए गणेश


अति विशाल अति भव्य झांकिया समय संभव

अति विशाल महानगरी देखता न कभी पराभव

एक दिवसीय, दस दिवसीय अर्चना अति विशेष

आ गए हैं मुंबई की धड़कन, ऊर्जा लिए गणेश


मुम्बई, नवी मुंबई अब तीसरी आ रही है मुम्बई

विस्तार है स्वीकार है सत्कार है हर कल्पना नई

गणपति बप्पा में है डूबा महाराष्ट्र का पूर्ण परिवेश

आ गए हैं मुंबई की धड़कन, ऊर्जा लिए गणेश


अपने घर में पधारे गणेश जी की प्रथम अर्चना

फिर मुंबई में भ्रमण कर रात्रिभर गणेश कल्पना

वक्रतुंड महाकाय का आशीष करें निर्मूलन क्लेश

आ गए हैं मुंबई की धड़कन, ऊर्जा लिए गणेश।


धीरेन्द्र सिंह

26.08.2025

11.46

दौर के दौड़

 दौर के दौड़ में हैं थक रहे पाँव

गौर से तौर देखे कहाँ तेरा गांव


एक जगत देखूं है ज्ञानी अभिमानी

एक जगत निर्मल निर्मोही जग जानी

जिससे भी पता पूछूं ना जानें ठाँव

गौर से तौर देखे कहाँ तेरा गांव


वह जो पुकार हृदय में रही गूँज

उभरते भाव रहे कामना को पूज

और कितना दौड़ना कहां है छांव

गौर से तौर देखे कहां तेरा गांव


पथ भी अनेक विभिन्न रंग के राही

हर पथ गूंजता करता तेरी वाहवाही

ओ चपल तू छलक ललक दे दांय

गौर से तौर देखे कहां तेरा गांव।


धीरेन्द्र सिंह

25.08.2025

21.00

शनिवार, 23 अगस्त 2025

आध्यात्मिक

अस्वाभिक परिवेश में बुलाया ना करो

आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो


माना कि स्वयं को हो करते अभिव्यक्त

पर यह तो मानो हर आत्मा यहां है भक्त

धर्म के भाव छांव संग गहराया ना करो

आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो


आसक्त है मन तुमसे जहां गहरी वादियां

उन्मुक्त तपन में सघन विचरती किलकरियाँ

अनुगूंज अपने मन का छुपाया ना करो

आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो


यह तन सर्वप्रथम है आराधना का स्थल

तन जीर्ण-शीर्ण ना हो करें प्रयास प्रतिपल

आसक्ति-भक्ति-मुक्ति जतलाया ना करो

आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो


चिकने चेहरे निर्मल मुस्कान लिए प्रेमगान

उल्लसित उन्मुक्त प्यार ही में किए ध्यान

यही आध्यात्मिक यह झुठलाया ना करो

आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो।


धीरेन्द्र सिंह

24.08.2025

08.42