शनिवार, 3 जुलाई 2021

कब बोलोगी

 चाहत की धीमी आंच पर

इंसान भी सिजता है,

तथ्य है सत्य है

आजीवन न डिगता है,

चाहत कब झुलसाती है

नैपथ्य बस सिंकता है,

कब बोलोगी इसी का इन्तजार

मन रोज तुमको ही लिखता है।


धीरेन्द्र सिंह

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