शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

शाम का छल

 शाम अपनी जुल्फों में

लिए पुष्प सुगंध

हवा को करती शीतल

क्या दुलारती है सबको,

शाम करती है छल

 निस दिन अथक

तोड़ती है भावनात्मक बंधन

दे अन्य के भावों का चंदन,

त्याग देती है

पुराने हो चुके को

नए से कर निबंधन,

अब शाम

नहीं रही पहले जैसी

अक्सर बोले

वादे और जिंदगी की

ऐसी-तैसी,

शाम अकुलाई है

नए को पाई

पुराने को ठुकराई है,

नहीं बीतती अब शामें

बहकी-बहकी बातों में

प्रणय अचंभित लड़खड़ाए

स्वार्थ सिद्ध के नातों में।


धीरेन्द्र सिंह

02.07.2021

शाम 06.40

लखनोए।


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