गुरुवार, 24 जुलाई 2025

उलाहना

 "भूल गए लगता"

पढ़ क्या कहता

व्यस्तता कारण नहीं

प्यार रहता हंसता


लिख रहा आध्यात्मिक

चिंतन वहीं रहता

ऐसा यदि बोलूं

प्यार क्यों करता


चूके जाएं चपड़ियाएँ

कौन है सहता

चाहत बन चकोर

मेरा संदेश तकता


शालीन सी शिकायत

शंखनाद सा विचरता

समर्पण ही साध्य

प्यार ऐसे निखरता


वह रहें शांत

उनका संदेश धीरता

पहल नहीं करतीं

भाव चटपटा बिखरता।


धीरेन्द्र सिंह

24.07.2025

18.41



बुधवार, 23 जुलाई 2025

साहित्य

 एक शब्द

ओढ़े हुए

अर्थ का वस्त्र,

ढूंढ रहा था

उपयुक्त भाव,


एक भाव

अभिव्यक्ति का

असर मिले

ढूंढ रहा था 

उपयुक्त शब्द,


संप्रेषण

टेबल पर

रखी चाय का

उड़ता महकता

वाष्प,


रचयिता

तल्लीनता से

रच रहा था

नव रचना

करता समृद्ध साहित्य,


साहित्य

पाठक मन में उड़ता

पुस्तकों में घुमड़ता

सितारों की तरह

टिमटिमा रहा है।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

19.13



मंगलवार, 22 जुलाई 2025

आत्मपैठ

मुझे मजबूर करती है मोहब्बत तुम्हारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


प्रणय के पल्लवन पर है तुम्हारी चंचलता

हृदय तुमको सराहा है लिए व्याकुलता

हृदय कहता है तुम ही हो नमन दुलारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


मुझे मालूम हैं समवेत सामाजिक चपलता

मेरी आत्मा करे प्रसारित निज धवलता

मोहब्बत कुछ नहीं कुछ चाहतों की तैयारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी


वही फिर ठौर अपना वही उभरे चंचलता

दिलफेंक हूँ जो प्यार पर अक्सर लिखता 

आध्यात्मिक यात्रा में आत्मपैठ की खुमारी

कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी।


धीरेन्द्र सिंह

23.07.2025

08.31




शनिवार, 19 जुलाई 2025

रिश्ते

चेहरे प्रसन्न दिखें अंतर्मन रहे सिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


मोबाइल से बात है कम खुशी या गम

उड़ रहा है उड़ता जा देखते हैं अब दम

एक चुनौती प्रतियोगिता सब अंदर रिसते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


दोनों छोर तार की पकड़ जर्जर ले अकड़

एक बैठा देखते कब दूजा चाहे ले पकड़

मानसिक द्वंद्व है ललक मंद है खिसकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते


इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं में घुल रहे संबंध

खानदानी समरसता जैसे भटका विहंग

अविश्वासीआंच पर संबंध जलते सिंकते

तार-तार हो गए पर हैं तार से अब रिश्ते।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

19.44




शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

दीजिए

 उचित अब यही रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


उचित अब यही है रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


प्रत्येक में कुछ श्रेष्ठता और विशिष्टता

हर एक की अलग पहल तौर श्रेष्ठता

समाज न हो विचलित ध्यान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


दिल के कमरे में नित व्यग्र चहलकदमी

मस्तिष्क है घिरा होकर तिक्त अग्र वहमी

संताप है पदचाप बन आघात नचनिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


एक दिया लौ से जले अनेक दिया लौ

मानवता भ्रमित हो आपके रहते क्यों

आप में अपार शक्ति व्यक्ति मान भजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

03.50

बुधवार, 16 जुलाई 2025

सत्य

 सत्य को पसंद कर्म की अर्चना है

स्वयं की अभिव्यक्ति ही सर्जना है

आत्मद्वंद्व प्रत्येक प्राणी स्वभाव भी

सहजता क्रिया में आत्म विवेचना है


अभिव्यक्तियों की हैं विभिन्न कलाएं

प्रत्येक कला प्रथम आत्म वंदना है

अभिव्यक्ति को बांध जीता है जो भी

क्या करे मनुष्य वह सही संग ना है


खुलने के लिए खिलना प्रथम चरण

खिल ना सके मन जीवन व्यंजना है

मुरझाए पुष्प लिए झूमती टहनियां हैं

सब जीते हैं कहते जीवन तंग ना है


एक दृष्टि से सृष्टि को न देखा जा सके

विभिन्नता ही भव्य जीवन अंगना है

स्वयं को निहारना मुग्ध मन से जो हो

समझिए जीवन घेरे सूर्यरश्मि कंगना है।


धीरेन्द्र सिंह

17.07.2025

10.39




तीन चरवाहे

 चेतना के चाहत के तीन चरवाहे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


मनसा, वाचा, कर्मणा ही तीन प्रमुख

धरती, आकाश, पाताल जीव सम्मुख

इन तीनों में संतुलन बौद्धिकता मांगे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


यश, कीर्ति, तीर्थ में निमग्न चेतनाएं

काम, क्रोध, मोह से मुक्ति को धाएं

अभिलाषाएं तुष्ट लगें या मन में पागें

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे


काव्य, कथा, संस्मरण के सब शरण

लेखन की होड़ में गुणवत्ता का क्षरण

साहित्य सुजानता से खुले हिंदी भागे

तीनों में होड़ लगी कौन आगे भागे।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2025

17.53