संवर जाने की जिद नयन जो किए
बदन तब महक चमन हो गया
पलकों की चांदनी छा गयी इस तरह
लगन अलमस्त दहन हो गया
मन की बारीकियां होंठ पर छा गयीं
भाव तत्परता से सघन हो गया
ढाँप कर कहन के वह कदम
फिर वही खूबसूरत वहम हो गया
देह की दिव्यता में नव अभिव्यक्तियां
आसक्तियों से बदन का नमन हो गया
मन व्याकुल बेचैन होने लगा
कैसे नयनों से भावों का गबन हो
गया।
धीरेन्द्र सिंह
30.12.2023
02.54
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