सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

साली जी

 महाकुम्भ ना पहुंचा पत्नीजी घुड़कीं

साली जी बोलीं आओ लगाएं डुबकी


आमंत्रण की यह मिठास दी हुलास

सड़क जाम देख हुई विचलित आस

खिलते एक प्रस्ताव की ऐसी कुड़की

साली जी बोलीं आओ लगाएं डुबकी


महाकुम्भ आस्था हुई और बलवती

ईश्वरीय प्रेरणा से मिली ऐसी सहमति

पत्नी जी जब सुनीं लगाई झिड़की

साली जी बोलीं आओ लगाएं डुबकी


कौन जाने किसका कहां का आत्मसाथ

मौन साधे रचना संग था उत्पात

सड़क जाम साली जी लक्ष्य तट की

साली जी बोलीं आओ लगाएं डुबकी।


धीरेन्द्र सिंह

20.02.2025

17.51




तन्हाई

 गम की परछाइयाँ, साया बनी हैं

मन की गहराईयां, माया बनी हैं

तन्हाई का भी निराला सा अदब

नभ में सिसकियां, छाया बनी हैं


जोड़ डाला कई से पता ना चला

स्व डूबा झुरमुटों की दया बड़ी है

अपने से अलग हो जाता है ऐसे

तन्हाई पूछती कहां संख्या खड़ी है


तन्हाई देती है गहनतम तन्मयता

तन्हाई भेदी है, निजता घनी है

तन्हाई में सिसकियां एक अवसाद

तन्हाई खेती है, शुभता धनी है।


धीरेन्द्र सिंह

10.02.2025

12.47

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

रिश्ते

 शीतलता सुगंध अद्भुत मलय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय हैं


प्रसिद्धि पहचान अद्भुत पनपना

श्रेष्ठ सुंदर सुरभि का ले सपना

कहीं से उलीचे कहीं का लय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय है


स्व से द्वय फिर जुड़ते ही जाएं

कुछ से दिल मौन कुछ को गाए

यहां का वहां का रिश्ता प्रलय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय है


हर तरंगित रिश्ते में स्व को जोड़ना

लगता कभी धारा को यूं ही मोड़ना

युक्ति कहे जुड़ जा कहता समय है

रिश्ते भी ऐसे असीमित वलय है।


धीरेन्द्र सिंह

08.02.2025

21.18




शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

आधे-अधूरे

 आधे-अधूरे ही रह गए होंगे

बेबसी को भी सह गए होंगे

एक जीवन को जीनेवाले ऐसे

एक तिनके सा बह गए होंगे


समय थपेड़ों सा बचना मुश्किल

हासिल कुछ तो कर गए होंगे

पुराने छूट गए टूटकर पड़े हैं

हृदय जब मुस्कराया नए होंगे


जिंदगी करवटों का बिस्तर है

कुछ सोए कुछ रच गए होंगे

सीमित दायरा होता है सभी का

कुछ रोये कुछ हंस गए होंगे


दौर स्वभाव है दौड़ते रहना

क्या मिला जो थक गए होंगे


तह तक पहुंचे उनका कहन अलग

शेष तो सामयिक बुलबुले होंगे।


धीरेन्द्र सिंह

06.25

08.02.2025



गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

बदलियां

 मेरी साँसों में छाई बदलियां हैं

हवाएं अनजानी चल रही हैं नई

सुगंध एक सा है शामिल सब में

दिल में गुनगुना रहे है बसंत कई


कौन घिर आया बिना आहट बेसबब

अदब की सुर्खियों में है तालीम नई

बदलियां शोख कभी खामोश लग रहीं

अदाओं में किसी के तो मैं शामिल नहीं


बरस जाएं तो बदलियों को आराम मिले

सिलसिले साँसों के रियाज कर रहे हैं कई

सुगंध मतवारी हवा संग छू रही ऐसे

शोखियाँ उम्र की दहलीज पर हो छुईमुई


कभी तन उड़ रहा तो मन रहे गुपचुप

बदलियां साँसों में छुपछुप करें खोज कई

एक एहसास की तलाश है जमाने में

कयास के प्रयास से मिल जाए सोच नई।


धीरेन्द्र सिंह

07.02.2025

10.35




बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

पल्लवन

 प्रणय का पल्लवन भी जारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


हृदय के मूल बसा रहता प्यार

अपना परिवेश भी देता खुमार

सम्मिश्रण यह धार दुधारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


क्यों खींचूं मन चाह है सींचता

क्यों रुकूँ परिवेश राह है खींचता

स्पंदनों में महकती धुन प्यारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


उम्र की पंखुड़ियों से है सजा प्यार

अनुभव की मंजुरियां हैं खिली बहार

समझ में बूझ करती चित्रकारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है।


धीरेन्द्र सिंह

06.02.2025

10.15




संशय

 दिल दहलता जब संशय है

कितना गहरा क्या संचय है


अपने जपने का सिलसिला

इसी में युग को है दुख मिला

लोगों का लक्ष्य तो धनंजय है

कितना गहरा क्या संचय है


कष्ट अपनों का है असहनीय

राह पथरीली तो भी वंदनीय

दर्द ज्यादा पर मन संजय है

कितना गहरा क्या संचय है


दिल फट पड़ने की परिस्थितियां

संस्कार भी और निर्मित रीतियाँ

जूझता बूझता लड़ता सुसंशय है

कितना गहरा क्या संचय है।


धीरेन्द्र सिंह

05.02.2025

19.33