शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024
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मंगलवार, 17 दिसंबर 2024
चाह
दियासलाई
एक दिए को
ज्योतिर्मय करने को
आमादा है,
तीलियाँ कसमाती
कब जल जाना है,
एक-दूसरे से जुड़ा
कैसा तानाबाना है,
मन एक तीली
हृदय दियासलाई
तुम दिया अंकुराई,
ऊर्जाएं तीली का सिरा
धरती सा गोल
या तुम्हारी पुतलियों सा,
हृदय के बाह्य तल पर
पटक अपना सर
जल जाने को आमादा,
चलो दीपावली मनाएं।
धीरेन्द्र सिंह
18.12.2024
07.15
सोमवार, 16 दिसंबर 2024
नारी
पग बढ़ा अंगूठे से खींचती हैं क्यारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी
चाह है, राह है, उमंगों की घनी छांह
उठती, उड़ती रुक जाती है सिकोड़ बांह
हाँथ होंठों पर रखी जब भावना किलकारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी
क्या बुरा है क्या भला है नारीत्व में पला
संस्कृति और संस्कार इनका, जग है ढला
संरचना यही संरचित यही लगें सर्वकार्यभारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी
लखि उपवन दृग चितवन भावनाएं गहन
जो सोचें पूरा न कहें मर्यादाओं के सहन
खंजन नयन कातिल मुस्कान लगें हितकारी
लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी।
धीरेन्द्र सिंह
16.12.2024
16.07
रविवार, 15 दिसंबर 2024
जाकिर
शब्द थाप से मिल गए भावों को सहला
जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला
श्रेष्ठतम संगीतज्ञ संग की हैं जुगलबंदी
तबला है इश्क़ कैसा की है नुमाइंदगी
तिहत्तर की उम्र में गए हो गया मसला
जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला
थिरकती अंगुलियों का तबले से वह प्यार
झूमते गर्दन नाचते केश तबला वादन साकार
कहां तबले पर जादू का कार्यक्रम है अगला
जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला।
धीरेन्द्र सिंह
15.12.2024
22.46
शनिवार, 14 दिसंबर 2024
मर-मर जीने में
कोई जब याद करता है बरसते भाव सीने में
वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में
हर घड़ी प्यार की पुचकार भरी जग आशाएं
क्या पड़ी किसपर कोई भला क्यों बतलाए
सजाता रचकर ऐसे विश्वास पहने नगीने में
वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में
कहां से बांधकर लाती हवाएं यादों के बस्ते
कहां से भाव आ जाते कसक यादों से सजते
यह यादें भी हैं कैसे जानती बरसना सीने में
वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में
कोई छूटकर भी छूटता नहीं लगे छूट गया
नयन भाव फूटकर भी फूटता नहीं बने नया
एक अंकुर निर्जला गुल खिलाता सुगंध सीने में
वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में।
धीरेन्द्र सिंह
15.12.2024
13.06
कौआ
कौआ चला हंस की चाल
गिरगिट ऑरकेस्ट्रा दे तान
लगे गिलहरी सा यह जीवन
पेड़, डालियाँ जीवन अनुमान
गिरगिट सा रंग बदलता ऑरकेस्ट्रा
तीन धारियां ब्रांड अभिमान
कौआ इसमें चपल बन गया
हंस लगे बस तिरते अभिज्ञान
जो जीता है वही सिकंदर
कांव-कांव कौआ आत्मज्ञान
हंस छवि सुंदर सा खुश है
और बनाए कौआ नित मचान।
धीरेन्द्र सिंह
14.12.2024
11.35
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024
पीठासीन
सत्य की अर्जियां तो दीजिए
कथ्य की मर्जियाँ भी लीजिए
प्रजातंत्र की है यह स्वतंत्रता
बरसते भाव रीतियों से भीगिए
आप विजेता नेता सा चल रहे
ठाठ में तो बाट को तो देखिए
कल तलक जयकारा लगानेवाला
किस कदर अनदेखा हुस्न हिए
दिल की संसद में है वाद-विवाद
शोर अनियंत्रित कुछ तो कीजिए
प्यार में पक्ष-प्रतिपक्ष द्वंद्व चरम
समर्पित है प्रणय पीठासीन लीजिए।
धीरेन्द्र सिंह
13.12.2024
19.30