बुधवार, 16 जून 2021

विश्लेषक

 शर्तें तुम्हारी होती थीं

बालहठ मेरा

तुम विश्लेषक रिश्ते

मैं एक चितेरा,

कलरव की संध्या बेला में

अनगढ़ दृश्य बिखेरा

समूह में लौटते पक्षी

देते दार्शनिक टेरा,

मनगढ़ जीवन ऊबड़_खाबड़

निर्धारित ही है बसेरा,

भ्रमित भाग्य या कर्म उन्मत्त

क्या ले जाए मेरा,

जिसकी बगिया वही है माली

बेहतर मेरा डेरा।


धीरेन्द्र सिंह


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