बहुत अनुराग था
हां प्यार था
दिल भी कहता है
वह यार था;
पर प्रसिद्धि की थी भूखी
रिश्तों से विराग था
पर अंदाज उसके
जिसमें नव पराग था;
जीवन की प्रत्यांचाएं
लक्ष्य से अनुराग था
बहुत पाना चर्चित हो जाना
यह भी एक शबाब था;
प्रियतम से अपने कामा
फिर पूर्णविराम ताब था
कई लोगों से करती गुफ्तगू
उसके प्यार का यही आब था।
धीरेन्द्र सिंह
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