पहला न करे फोन जुगत यह लगाती है
पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है
सोशल मीडिया पर साहित्य प्रेम गांव
कुछ न कुछ लिखते सब इसके छांव
लिख उन्मुक्त चाह भरमाती बुलाती है
पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है
घर में करे सवाल तो कहें साहित्य चर्चा
पैसे लगा प्रकाशित पुस्तकों पर चर्चा
कभी मैसेंजर, कभी व्हाट्सएप चलाती है
पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है
कर देती अनब्लॉक पहले प्रेमी से बतियाए
रिश्तेदार का कॉल था झूठ पालना झुलाए
अपने चटखिले पोस्ट उससे हाइड कर जाती है
पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है
फिर गोष्ठियों का जुगाड से हो आयोजन
कभी चाय के आगे न खाने का आयोजन
नयन अठखेलियों में छुवन खिलखिलाती है
पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है।
धीरेन्द्र सिंह
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