बरसते नभ से धरा विमुख
प्रांजलता वनस्पतियों में भरी
मेघ के निर्णय हुए नियति
प्रकृति भी है खरी-खरी
टहनियों पर मुस्कराते पुष्प हैं
पत्तियां झूम रहीं, हरि की हरी
उपवन सुगंध में उनकी ही धूम
भ्रमर अकुलाए कहां है रसभरी
पहले सा कुछ भी नहीं अब
बंजरता व्यग्र, कहां वह नमी
नभ का दम्भ या धीर धरा
विश्व की पूर्णता है लिए कमी।
धीरेन्द्र सिंह
24.03.2022
17.15
गुरुवार, 24 मार्च 2022
बंजरता
बुधवार, 23 फ़रवरी 2022
युद्ध
यूक्रेन
हिम्मत और हौसला
रूस
आधिपत्य का फैसला,
याद आया महाभरत
युद्ध कौशल की महारत
रणनीतियों का जलजला
यह विश्व कहां चला,
प्रखर वही व्यक्तित्व
है जिसका शीर्ष अस्तित्व
दूरदर्शी ना मनचला
रूस विश्व की कला,
वसुधैव कुटुम्बकम
विस्तारवाद का कदम
पढ़ाने की चतुर कला
भारत का हो भला,
बदल रही परिस्थितियां
अधूरा इतिहास दरमियाँ
कितना बहा और लगे गला
त्यजन, काल को गले लगा,
यूक्रेन
युद्ध कौशल आयातित
रूस
भारत भी सोचे कदाचित।
धीरेन्द्र सिंह
23.02.2022
र
शनिवार, 12 फ़रवरी 2022
दरमियाँ
आह! प्रणय
ओह! प्रणय
भावनाओं की नर्मियाँ
दो दिलों के दरमियाँ;
मन के गुंथन
चाहत हो सघन
कैसी यह खुदगर्जियाँ
दो दिलों के दरमियाँ
कह रही धड़कनें
बढ़ रही तड़पनें
मिलन की सरगर्मियां
दो दिलों के दरमियाँ
व्यर्थ है प्रतिरोध
सजग है निरोध
सुसज्जित हैं अर्जियां
दो दिलों के दरमियाँ।
धीरेन्द्र सिंह
शनिवार, 5 फ़रवरी 2022
लता मंगेशकर - श्रद्धांजलि
लता मंगेशकर - सुर देवी - श्रद्धांजलि
संगीत की आत्मा
चल गई जग छोड़
श्रद्धांजलि पूछे यह
क्या इसका है तोड़
युग है भरा-पुरा
सुरों का मशवरा
स्वर यह बेजोड़
क्या इसका है तोड़
सुरों की आराधना
गीत छाया घना-घना
सरगमों का आलोड़
क्या इसका है तोड़
साधिका का गमन
सरगमें संकलित सघन
कहें गयी क्यों मुहं मोड़
क्या इसका है तोड़।
धीरेन्द्र सिंह
पूर्वाह्न 10.55
मंगलवार, 18 जनवरी 2022
दालान
अहसान के दालान में
गौरैया का खोता है,
जेठ की धूप खिली
मन सावन का गोता है;
खपरैले छत छाई लतिकाएं
पदचिन्ह दालान भरमाएं
दृष्टि कहे बड़ा वह छोटा है
सूना पड़ा गौरैया खोता है;
फिर वही पाद त्राण अव्यवस्थित
कौन है व्यक्तित्व फिर उपस्थित
मन के हल से नांध तर्क जोता है
झूम रहा क्यों आज खोता है।
धीरेन्द्र सिंह
गुरुवार, 13 जनवरी 2022
मकर संक्रांति
धर्म जब कर्म के करीब हो
जीवन की मिटे सब भ्रांति
ऑनलाइन उत्सव मनाएं यूं
मन से हो मन मकर सक्रांति
लोहड़ी भी संग लिए पोंगल
तीन अलग नाम लिए विश्रांति
फसलों से आसमान गूंज उठे
मन से हो मन मकर संक्रांति
शीत ढले ऊष्मा बढ़े ले उल्लास
ऐसी ही होती सब धार्मिक क्रांति
आपकी उमंग में उड़ती पतंग हो
मन से हो मन मकर संक्रांति।
धीरेन्द्र सिंह
सोमवार, 27 दिसंबर 2021
उसकी बात
वह कहती है
सब सच नहीं होता
भ्रम है सोशल मीडिया,
मैने कहा
इस मीडिया ने तुम्हें दिया
लगा लगने एक दूजे को
एक है जिया,
झल्लाकर वह बोली
यदि सोशल मीडिया
लगता है सत्य
तो गौण कथ्य
जी लीजिए
वहीं शर्तिया
मानव प्रकृति
छुपाने की
बरगलाने की
कुछ दीवानी की
कुछ दीवाने की .
धीरेन्द्र सिंह