चांदनी बादलों से अचानक गयी सिमट
क्या करूँ व्योम से बोला बादल लिपट
प्यार उर्ध्वगामी इसकी प्रकृति ना अवनति
यार मात्र एक ठुमकी सहमति या असहमति
प्यार ना सदा मृदुल राह यह है विकट
क्या करूँ व्योम से बोला बादल लिपट
आज भी आकाश में दौड़ रहे हैं मेघ
चांदनी कब मिले, क्या लगाएं सेंध
द्विज में ही गति, बूझना कठिन त्रिपट
क्या करूँ व्योम से बोला बादल लिपट
चांदनी है चंचला चांद को न आभास
जलभरे बादलों में भी है अनन्य प्यास
प्रेम एक से ही होता बोलता विश्व स्पष्ट
क्या करूँ व्योम से बोला बादल लिपट
एक प्रतीक्षा प्यार का दिव्यतम अभिसार का
नभ में नैतिकता के भव्यतम स्वीकार का
यदि प्रणय प्रगल्भ तो चांदनी चुम्बक निपट
क्या करूँ व्योम से बोला बादल लिपट।
धीरेन्द्र सिंह
07.01.2024
19.44
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