मंगलवार, 9 जनवरी 2024

सहन की महारानी

 हथेलियों की अंगुलियां उलझाना चाहता हूँ

तुम्हारे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ


बहुत हो छिपाती तुम अपनी कहानी

खुशियां लपेटे सहन की ऐ महारानी

तुम्हें तुमको तुमसे आजमाना चाहता हूँ

तुम्हाडे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ


जब भी करूं प्रश्न देती हो मुस्करा

अदा से कह देती मुझसा न मसखरा

राज दिल के तुम्हारे मांजना चाहता हूँ

तुम्हारे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ


बड़ी ढीठ हो कहते-कहते रुक जाती

धुआं फैल जाता न जलती है बाती

दिए मन के तुम्हारे लौ सुहाना चाहता हूँ

तुम्हारे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

10.01.2024


06.14

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