हथेलियों की अंगुलियां उलझाना चाहता हूँ
तुम्हारे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ
बहुत हो छिपाती तुम अपनी कहानी
खुशियां लपेटे सहन की ऐ महारानी
तुम्हें तुमको तुमसे आजमाना चाहता हूँ
तुम्हाडे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ
जब भी करूं प्रश्न देती हो मुस्करा
अदा से कह देती मुझसा न मसखरा
राज दिल के तुम्हारे मांजना चाहता हूँ
तुम्हारे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ
बड़ी ढीठ हो कहते-कहते रुक जाती
धुआं फैल जाता न जलती है बाती
दिए मन के तुम्हारे लौ सुहाना चाहता हूँ
तुम्हारे दर्द को मैं यूं पहचानना चाहता हूँ।
धीरेन्द्र सिंह
10.01.2024
06.14
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