मुझे इतना पढ़ ली नया क्या मिलेगा
नया ना मिला तो नया क्या खिलेगा
प्रहसन नहीं है प्रणय की यह डगर
सर्जन नहीं है अर्जन की कहां लहर
नवीनता में ही नव पथ्य खुलेगा
नया न मिला तो नया क्या खिलेगा
एक आदत हो जाए तो प्रीत पुरानी
एक सोहबत सहमत तो गति वीरानी
हर कदम बेदम ना नई राह चलेगा
नया न मिला तो नया क्या खिलेगा
जीवन में मनुष्य होता नहीं है रूढ़
धरा और व्योम वही, विभिन्नता आरूढ़
भाव पंख खुले तो वही सृष्टि रंगेगा
नया न मिला तो नया क्या खिलेगा।
धीरेन्द्र सिंह
12.01.2024
14.48
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