चाहत की इतनी नहीं कमजोरी
क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी
गर्व के तंबू में तुम्हारा है साम्राज्य
चापलूसों संग बेहतर रहता है मिजाज
सत्य के धरातल पर क्षद्मभाव बटोरी
क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी
उम्र कहे प्रौढ़ हो, किशोरावस्था लय है
जहां भी तुम पहुंचो, तुम्हारी ही जय है
तुम हो तरंग बेढंग की मुहंजोरी
क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी
राह अब मुड़ गयी इधर से उधर गयी
झंकृत थी वीणा अब रागिनी उतर गयी
सर्जना के शाल ओढ़ाऊँ न सिंदूरी
क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी
आत्मा से आत्मा का होता विलय
तुम ढूंढो आत्मा में दूजा प्रणय
सुप्त यह गुप्त, निरंतर है लोरी
क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी।
धीरेन्द्र सिंह
08.01.2024
08.48
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