कौन जाने कौन सी बला टल सी गई
भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई
सुबह होते ही व्हाट्सएप पर झंकार
प्रीतमयी संवेदना का आदर सत्कार
नित नए अंदाज चाहे बातें भी नई
भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई
मैंने नहीं मेरे घर ने भी दिया दुत्कार
हिम्मती थी वह प्रतिदिन की अभिसार
चेतना में वेदना की संवेदना लड़ी गई
भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई
वर्ष तक किया उसकी चंचलता पर वार
इधर-उधर फुदकने से मानी ना हार
एक संग कई को घुमाती गली गई
भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई
अब मस्तिष्क मुक्त सजाए निस सर्जनाएं
साहित्य में घटित वही भाव लिखते जाएं
पकड़ ली, जकड़ ली लहर थी डंस गई
भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई।
धीरेन्द्र सिंह
09.01.2024
18.56
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