केशों में तुम्हारे शब्दों को सजाकर
भावनाओं की कंघी से केश संवारकर
कुछ गीत प्रणय के कर दूं तुम्हारे प्राण
आत्मा की आत्मा से नींव बनाकर
भावनाओं पर भावनाओं को बसाकर
तिनके सा बह चले जिंदगी नहाकर
इतनी आतुरता तो हुई न अकस्मात
क्या-क्या गए सोच एक तुमको चुराकर
मन से उठे गीत होंठ देने लगे शब्द
अंगड़ाईयों को यूं तनहाईयों में गाकर
तुमको ही लिपटा पाता शब्दों में सुगंध
एक मदहोशी की खामोशी में छुपाकर
यह प्रवाह प्रणय या व्यक्तित्व तुम्हारा
क्यों लगने लगा प्रीत तुम्हारा चौबारा
निवेदित नयन के आचमन कर लिए
तब से लगने लगा तुम में जग सारा।
धीरेन्द्र सिंह
10.01.2024
23.36
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें