बुधवार, 10 जनवरी 2024

तुम में

 केशों में तुम्हारे शब्दों को सजाकर

भावनाओं की कंघी से केश संवारकर

कुछ गीत प्रणय के कर दूं तुम्हारे प्राण

आत्मा की आत्मा से नींव बनाकर


भावनाओं पर भावनाओं को बसाकर

तिनके सा बह चले जिंदगी नहाकर

इतनी आतुरता तो हुई न अकस्मात

क्या-क्या गए सोच एक तुमको चुराकर


मन से उठे गीत होंठ देने लगे शब्द

अंगड़ाईयों को यूं तनहाईयों में गाकर

तुमको ही लिपटा पाता शब्दों में सुगंध

एक मदहोशी की खामोशी में छुपाकर


यह प्रवाह प्रणय या व्यक्तित्व तुम्हारा

क्यों लगने लगा प्रीत तुम्हारा चौबारा

निवेदित नयन के आचमन कर लिए

तब से लगने लगा तुम में जग सारा।


धीरेन्द्र सिंह


10.01.2024

23.36

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