सोमवार, 19 मार्च 2018

हिंदी

चलत फिरत चौपाल चहुबन्दी
कहते सबकी जुबान है हिंदी
समरसता युग्म एकता रचाए
रश्मियों की मुग्धजाल है हिंदी

सब जानें बातों की ही हिंदी
भाषाजगत में भी चकबंदी
भाषा कामकाजी विरक्त है
दिग दिगंत जैसे शिव नंदी

कभी लगे भरमाती हिंदी
लिखित प्रयोग न पाती हिंदी
ढोल नगाड़े पर जो थिरके
ऐसी ही हिंदी हदबंदी

सुने प्रयोजनमूलक हिंदी नहीं
हस्ताक्षर को भी न भाए हिंदी
लिखित घोषणाएं हुईं बहुत
फाइल साज बजे पाखंडी।

धीरेन्द्र सिंह

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