पता नहीं जीवन समझाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
लोग कहते हैं जीवन गणित है
हर जीवन लचीला नमित है
मैं मनमौजी जीवन ज्ञाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
जो सत्य है वहीं जीवन लक्ष्य है
सभी अपूर्ण फिर भी दक्ष हैं
आवरण स्वीकार्यता आता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
उमड़ रही भीड़ कारवां का तीर
रंक को देखिए शीघ्र बना अमीर
व्यवस्था, जुगाड से बना नाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
हो रहा समाज विमुख उसकी मर्ज़ी
भीड़ हिस्सा बन ना भाए खुदगर्जी
राह निर्मित कर नवीन जगराता कहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
सबकी अपनी सोच है सिद्धांत है
सत्यता से प्रीत वह न दिग्भ्रांत है
जीवन मूल्य से हटकर अपनाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
लीक पर चलना भाता नहीं
लोग कहते हैं जीवन गणित है
हर जीवन लचीला नमित है
मैं मनमौजी जीवन ज्ञाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
जो सत्य है वहीं जीवन लक्ष्य है
सभी अपूर्ण फिर भी दक्ष हैं
आवरण स्वीकार्यता आता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
उमड़ रही भीड़ कारवां का तीर
रंक को देखिए शीघ्र बना अमीर
व्यवस्था, जुगाड से बना नाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
हो रहा समाज विमुख उसकी मर्ज़ी
भीड़ हिस्सा बन ना भाए खुदगर्जी
राह निर्मित कर नवीन जगराता कहीं
लीक पर चलना भाता नहीं
सबकी अपनी सोच है सिद्धांत है
सत्यता से प्रीत वह न दिग्भ्रांत है
जीवन मूल्य से हटकर अपनाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
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