बुधवार, 3 सितंबर 2025
आओ मिलो
मंगलवार, 2 सितंबर 2025
अभियुक्त
अभियुक्त
समूह में होकर भी समूह से ना मैं संयुक्त
जुड़ाव भूलकर कह उठे मुझे अभियुक्त
हिंदी जगत के जंगल का हूँ एकल राही
दायित्व भाषा साहित्य का उसका संवाही
स्व विवेक ने मुझे स्वकर्म हेतु किया नियुक्त
जुड़ाव भूलकर कह उठे मुझे अभिभूत
आग्रह था, मंच नाम रचना शीर्षक लिखें
छवि अपनी भी लगाएं, भूल रचना हदें
भाषा साहित्य संवरण में क्या यह उपयुक्त
जुड़ाव भूलकर कह उठे मुझे अभियुक्त
जरा सी बात पर हिंदी लगा है तिलमिलाई
त्यजन कर बढ़ा वहां कुछ कहें है ढिठाई
हिंदी विधाओं का संवर्धन करें अब संयुक्त
जुड़ाव भूलकर कह उठे मुझे अभियुक्त।
धीरेन्द्र सिंह
02.09.2025
18.31
सोमवार, 1 सितंबर 2025
रात बहेलिया
रात बहेलिया बनकर
अपना काला जाल
फेंक रही है
अति विस्तृत
अति महत्वाकांछी,
चांदनी नहीं आ रही
पकड़ में
जाल घूम रहा है
कुत्तों से बचते-बचाते
भौंकते झपटते हैं
जाल पर,
रात अभी तेजी से
दौड़ती गुजरी है
मेरे पास से
और में उठ बैठा
रात्रि के एक बजे,
चमगादड़ अलबत्ता
कर देते हैं उत्सुक
जाल को
और बहेलिया रात
लपक दौड़ती है
चमगादड़ में ढूंढने
चांदनी,
सन्नाटा वादियों की
गहराई से गहन है
सडकें लग रही है
खूबसूरत
दूर-दूर तक,
थकी निढाल उनीदी,
बहेलिया सम्भालस जाल
चार रहा है पकड़ना
चांदनी,
मुझे क्या
नींद आ रही है,
बौराया बहेलिया
दौड़ाता भागता रहेगा
भोर तक,
चांदनी ? फिर चांदनी कहां,
सोते हैं।
धीरेन्द्र सिंह
02.09.2025
01.05
रविवार, 31 अगस्त 2025
आएंगे
रोज ऐसे अगर आएंगे
हम बेपनाह संवर जाएंगे
मुझे दिखती है जिंदगी
बंदगी में उमर बिताएंगे
आने का है कई तरीका
सलीका भी बुदबुदाएँगे
अदाओं की देख आदत
उम्मीदगी का असर पाएंगे
आती है भोर किरणें
उसमें ही नजर आएंगे
किरणों पर जीवन आश्रित
आनंदिगी से भर जाएंगे
सुबह राह तकती आंखें
वह आकर गुनगुनाएंगे
रच जाती नित कविता
पढ़ इसको मुस्कराएंगे।
धीरेन्द्र सिंह
31.08.2025
19 26
शनिवार, 30 अगस्त 2025
चल बैरागी
संकुचित मर्यादाएं
दबंग संस्कार
व्यथित मनोकामनाएं
भूसकल त्यौहार
हर किसी का बाड़ा
लुकछुप व्यवहार
किसका किसपर उधार
कहां कब अख्तियार
सब जिएं ऐसे ही
जीवन लौ को दे बयार
सत्य उभरता ही कहाँ
सत्यवादी यह संसार
अकुलाहट विश्राम चाहे
सुखकर गोद की दरकार
चल बैरागी ठौर वही
जहां चिंगारियों का चटकार।
धीरेन्द्र सिंह
31.08.2025
06.31
शुक्रवार, 29 अगस्त 2025
कर्म का फल
कर्म अब धर्म, अर्थ, भाषा आधारित
कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित
सत्कर्म है संबंधित समाज, देश नियम
कर्म व्यक्तिजनित हतप्रभ अधिनियम
पाप-पुण्य समायाधीन जग में संचारित
कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित
जैसा कर्म वैसा फल प्रबुद्ध समाज का
भ्रष्टाचार जहां वहां परिणाम गजब का
मानवता सृजित निरंतर विकास पगधारित
कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित
कलयुग का नाम ले कर्मधर्म कहें कंपन
मानवयुग उलझन में हो कहां समंजन
सब चले राह चले बांह छाहँ ना निर्धारित
कर्म का फल प्रश्नांकित है, विचारित।
धीरेन्द्र सिंह
29.08.2025
13.39
गुरुवार, 28 अगस्त 2025
अधर आंगन
अधर के आंगन में अनखिले कई शब्द
असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध
नयन की गगरी से भाव तरल कभी गरल
अगन की चिंगारियां हवा संग रही बहल
अधर आंगन में चाहत जैसे छुईमुई निबद्ध
असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध
चल पड़े भाव राह उलझा जो संग बहेलिया
खिल पड़े घाव आह सुलझा दी तंग डोरियां
कुछ भ्रम भी उभरते हैं जैसे अलगनी प्रारब्ध
असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध
अधर गुप्त कंपन समंजन में पाए भंजन
आंगन हवा बहे प्रयास किमनरूप प्रबंधन
आत्मिक ऊर्जा लहक लपक छुई आबद्ध
असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध।
धीरेन्द्र सिंह
28.08.2025
18.3