मैंने तुमको पढ़ लिया
उम्मीद भर गढ़ दिया
मेरा अब क्या काम है
बस तुम्हें सम्मान है
तुम अधरों की नमीं
ज़िन्दगी की हो जमीं
शब्द भाव क्या धाम है
बस तुम्हें सम्मान है
तथ्य की तुम स्वरूप हो
मेरे जीवन की ही धूप हो
यहां न सुबह न शाम है
बस तुन्हें सम्मान है
पारदर्शिता मेरी तुम भ्रमित
मुझको समझना हुआ शमित
मेरी गलियों में गैरों का गुणगान है
बस तुम्हें सम्मान है
हृदय की उड़ान नव वितान
साथ उड़ने पर कैसा गुमान
मन की झोली में प्यार तापमान है
बस तुम्हें सम्मान है।
धीरेन्द्र सिंह
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