कल्पनाएं अथक पथिक
भाव से राहें रचित
लक्ष्य लंबा हो गया
व्यक्ति कहीं खो गया
मैं से कौन है परिचित
रोम-रोम संपर्क जड़ित
सरायखाना हो गया
व्यक्ति कहीं खो गया
शक्ति, भक्ति और युक्ति
यह स्थिर उसकी मुक्ति
प्रवाह नव वो गया
व्यक्ति कहीं खो गया
बौद्धिक अति बौद्धिक वर्गीकरण
सबका सब ही हैं शरण
विभाजन अंजन ले गया
व्यक्ति कहीं खो गया।
धीरेन्द्र सिंह
10.02.2024
17.24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें