प्यार श्रृंगार अधर रचकर
खुमार आधार के अनुरागी
किस रूप मिलन दृग का
क्या प्रणय रीत है सहभागी
मुस्कान दबी कथा रचित
किस विधि हो जाते संज्ञानी
बिन संबोधन का सम्मोहन
निस अनुभूति प्रीत अनजानी
किस बात अधर पर बात रहे
किस राह सबर की चाह ढहे
कह सकने की जिज्ञासा भी
किस शब्द को साज सांझ गहे
मन मोहित एक पुरोहित है
हर भाव सकल तिरोहित है
अब लगे कठिन है यजमानी
पर कब मानी है प्रीत दीवानी।
धीरेन्द्र सिंह
03.02.2024
16.50
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