शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

साहित्यिक देवदासियां

 आजकल 

महफिलें नहीं जमती

गजरे की खुश्बू भरी गलियां

पान के सुगंधित मसालों की

सजी, गुनगुनाती दुकानें

और सजे-संवरे

इश्क़ के शिकारियों की

इत्र भरे जिस्म

सीढ़ियों पर नहीं लपकते,

अब नया चलन है

फेसबुक, व्हाट्सएप्प आदि

महफिलों के नए ठिकाने

इनकी भी एक नस्ल है

ढूंढना पड़ेगा

और मिल जाएंगी

मदमाती, बलखाती

लिए अदाएं

प्यासी और प्यास बुझानेवाली

पढ़ी-लिखी, धूर्त, मक्कार

आधुनिक देवदासियां,

कुछ साहित्यिक पुस्तकें पढ़

कुछ नकल कर लेती मढ़

और रिझाती हैं, बुलाती हैं,

कुछ भी टिप्पणी कीजिए

बुरा नहीं मानेंगी

बल्कि फोन कर

अपने जाल में फासेंगी,

कर लेंगी भरपूर उपयोग

फिर कर देंगी त्याग

बोलेंगी मीठा हरदम

आशय होगा"चल भाग"

आज ऐसी ही 

"साहित्यिक" देवदासियों का भी

बोलबाला है,

ऑनलाइन इश्क़ स्वार्थ सिद्धि

और बड़ा घोटाला है,

प्रबुद्ध, चेतनापूर्ण, गंभीर

महिला रचनाकार

कर रहीं गंभीर साहित्य सर्जन

कुछ "देवदासियां" अपनी महफ़िल सजा

कर रही साहित्य उपलब्धि सर्जन,

हे देवदासियों

पढ़ आग लगे जल जाइए

हिंदी साहित्य को बचाइए।


धीरेन्द्र सिंह

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