गुरुवार, 29 मार्च 2018

भोर

भोर की पलकें और चेहरे पर जम्हाई
मन में राधा सी लगे रागभरी तन्हाई
कोमल खयाल सिद्धि जीवन की कहे
एक शुभ दिन आतुर व्यक्त को बधाई

सुबह के संवाद अक्सर अनगढ़ बेहिसाब
तैरता मन उड़ता कभी दौड़ता अमराई
और एहसासों का बंधन प्रीत क्रंदन
युक्तियां असफल कई डगर डगर चिकनाई

छुट्टी हो तो बिस्तर ले करवटें पकड़
बेधड़क न सुबह लगे न अरुणाई
अलसाए तन में सघन गूंज होती रहे
तर्क वितर्क छोड़ मति जाए मुस्काई

और कितना सुखद निढाल ले ताल
बवाली भावनाएं नव माहौल है गुंजाई
कोई न छेड़े प्रीत योग की कहें क्रियाएं
नवनिर्माण नवसृजन  निजता की तरुणाई।

धीरेन्द्र सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें