क्या कहूँ क्या-क्या गुजर जाता है
इश्क जब दिल से गुजर जाता है
एक संभावना बनती है संवरती है
पल ना जाने कैसे मुकर जाता है
एक से हो गयी मोहब्बत बात गयी
इश्क फिर दोबारा ना हो पाता है
ना जाने क्यों दूजे की ना बात करें
इंसान खुद से खुद को छुपाता है
दिल को छू ले तो हो जाए प्यार
प्रीत की रीत जमाना झुठलाता है
कैसे ना चाहे दिल यह खूबसूरती
जब लिखती हो दिल पिघल जाता है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
इश्क का मंज़र जहाँ होता है
जवाब देंहटाएंचाँद भी लहरों पे दिखाई देता है
मुट्ठी में भरके चाँद
मन इश्क ही इश्क हुआ जाता है ...
हर पंक्ति खूबसूरत है ..बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंदिल का मामला ऐसा ही होता है जिसमें प्यार का खज़ाना भरा होता है । बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ क्या-क्या गुजर जाता है,
जवाब देंहटाएंइश्क जब दिल से..........
वाह बहुत खूबसूरत... कमाल की पंक्तियाँ...
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेन्द्र सिंह जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत अच्छा है आपका ब्लॉग और अनेक पुरानी प्रविष्टियां देख-पढ़ कर भी प्रसन्नता हुई …
आपकी रचना भी काबिले-तारीफ़ है …
एक संभावना बनती है संवरती है
पल ना जाने कैसे मुकर जाता है
बहुत ख़ूब ! प्रशंसनीय !!
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
वैशाखी पर्व की भी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार