शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्यार पर एतबार

एक चाहत प्यार का झूला झूले
मन में उठती आकर्षण की हरकतें
दौड़ पड़ता मन किसी मन के लिए
यदि हो ऐसा तो कोई क्या करे

एकनिष्ठ प्यार पर एतबार तो रहा नहीं
मन है चंचल नित नवल हैं हसरतें
कैसे हो एक पर ही हमेशा समर्पण पूर्ण
दिखे हैं चेहरे हुई हैं चाहतीय कसरतें

प्यार परिभाषाओं में बांध पाया कौन
प्यार मर्यादाओं में टटोलती हैं आहटें
खुद भ्रमित कर दूजा चकित प्यार करें
कौन कहता बेअसर होती हैं सोहबतें

एक आकर्षण से बच पाना कठिन
मन को मन की है पुरानी आदतें
मैं हूं प्यार के उपवन का एक किरदार
दिल नमन करता है प्यार की शहादतें।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 24 मार्च 2011

बंधन

उड़ चलो संग, साथ मिल जाएगा
आसमान बदलियों सा झुकता नहीं
भावनाओं का प्रवाह है निरंतर
किसी अंतर पर यह रूकता नहीं

बंधनों के स्थायित्व की खुशी
हर्षित मन को बंधन पुरता नहीं
एक रिश्ता जन्म भर का मुकाम
जन्म भर पर यह जुड़ता नहीं

होगी कई आपत्तियॉ इस विचार पर
सोच व्यापकता लिए कुढ़ता नहीं
कितनी कोशिशें हो चुकीं नाकाम
मन सोचता पर कदम मुड़ता नहीं

बंधनों को तोड़ने का न हिमायती
बंधनों में रचनात्मकता है मूढ़ता नहीं
बंधनों से मन में जो सिसकारी उठे
झेलना कायरता है यह शूरता नहीं.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीवन संघर्ष

विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
मौसम भी है, ज़ज्बात भी है,
 

बहे भावों का निर्झर सा झरना

पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना

एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना

रहे कुछ ना अटल है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी की सोच से क्या करना.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 23 मार्च 2011

प्यार की राह

सूर्य किरणें कितनी व्याकुल हो दौड़ चलीं
इस धरा पर  प्रीत जैसै  अब तीरथ हुआ है
भोर की अरूणिमा में पुलकित हुई है चाहतें
आज मन को फिर उन्हीं यादों ने छुआ है

चंदा चुपचाप निरखता रहा रात, हतप्रभ
चांदनी में उठता यह कौन सा धुऑ है
करवटें ना समझ सकीं कसमसाहट का सबब
सितारे ना समझ पाए तो कह गए दुआ है

मन के अन्दर मन हैं और भी कई
चाहतों और आहटों को भी गुमां है
कौन सी आराधना है अनवरत, अविकल
मन की सांखल बन कौन यह गुथां है

प्यार का अधिकार हर दिल की पुकार
दो दिलों के दरमियॉ का यह कहकहा है
एक दिल से दूसरे तक दौड़ रही हैं सदाएं
प्रश्न फिर भी खड़ा कि वह दिल कहॉ है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शनिवार, 19 मार्च 2011

दर्द रंग में भींगा सकूं


कर्मठता का रंग लिए मैं खेल रहा हूं होली

सूनी आँखें टीसते दिल की ढूंढ रहा हूँ टोली



रंग, उमंग, भाँग में डूबनेवाले यहाँ बहुत हैं

रंगहीन जो सहम गए हैं बोलूँ उनकी बोली



अपनी खुशियाँ सबमें बांटू जिनका सूना आकाश

दर्द रंग में भींगा सकूं ऐसे हों हमजोली



दर्द-दुखों के संग मैं खेलूँ रंग असर रसदार

सूनी आँखों चहरे पर दे खुशियों की रंगरोली



निकल चला हूँ दर्द ढूँढने सड़कों पर गलियों में

मुझ जैसे और मिलेंगे क्या खूब जमेगी होली.






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली की बोली

आपके रंग  लिए उमंग, छेड़े जंग है
आपके विचारों ने, भिंगाया है मन को
आपको सोचता बैठा हूं, गुमसुम सा मैं
खेल रहा होली संग, भूलकर तन को

आपके गुलाल ने, मलाल सारे धो दिए
मेरा भी अबीर, कबीर सा धरे चमन को
दो चमकती ऑखों संग, दो गुलाल भरे हॉथ
अबीर भी अधीर सा, ढूंढे उसी उपवन को

तन की बोली मन की होली, आज हर्षाए
मन है चंचल नाचे पल-पल, नए गमन को
कैसी चूनर, कहॉ वो झूमर, बावरी जुल्फों संग
मैं निहारूं राग-रंग, आपके इस बनठन को

प्यार है, सम्मान है या आप पर है यह गुमान
रंग सारे ले ढंग न्यारे, निहारे आगमन को
एक सोच कल्पना को दे रहा अमराईयां
होली पर बोली है तरसे, श्रृद्धा आचमन को.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 14 मार्च 2011

यह ना समझिए

 
यह ना समझिए कि, दूर हैं तो छूट जायेंगी
अबकी होली में मैंने, खूब रंगने की ठानी है
यह ना समझिए कि, मिल ना सकेंगे हम
आपके ब्लॉग से, मेरे ब्लॉग का दाना-पानी है

कुछ हैं ख्याल अलहदा, कुछ हुस्न रूमानी
कुछ अंदाज़ निराला, कुछ तो ब्लॉगरबानी है
नया रिश्ता है, अहसास रिसता है हौले-हौले
दिल की आवाज यह, ना कहिए नादानी है

मैंने चुन लिया है रंग, आपके ब्लॉग से ही
जश्न-ए-होली की टोली भी वहीं बनानी है
खिल उठेंगे रंग, आपके रंग से मिलकर ही
फिर देखिएगा कि महफिल भी दीवानी है

दिल की आवाज मन में दबाए तो होली कैसी
ज़िंदगी तो फकत अहसासों की मेहरबानी है
मिलूंगा ज़रूर इस होली पर रंग साथ लिए
मेरे रंग से तो मिलिए यही तो कद्रदानी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.