शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्यार पर एतबार

एक चाहत प्यार का झूला झूले
मन में उठती आकर्षण की हरकतें
दौड़ पड़ता मन किसी मन के लिए
यदि हो ऐसा तो कोई क्या करे

एकनिष्ठ प्यार पर एतबार तो रहा नहीं
मन है चंचल नित नवल हैं हसरतें
कैसे हो एक पर ही हमेशा समर्पण पूर्ण
दिखे हैं चेहरे हुई हैं चाहतीय कसरतें

प्यार परिभाषाओं में बांध पाया कौन
प्यार मर्यादाओं में टटोलती हैं आहटें
खुद भ्रमित कर दूजा चकित प्यार करें
कौन कहता बेअसर होती हैं सोहबतें

एक आकर्षण से बच पाना कठिन
मन को मन की है पुरानी आदतें
मैं हूं प्यार के उपवन का एक किरदार
दिल नमन करता है प्यार की शहादतें।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारी कविता
    प्यार कहाँ बंधन मे बधता है
    शुभकामनाये

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  2. प्यार के आकर्षण से बच पाना कठिन ही नहीं दुष्कर भी है । उम्दा रचना इस खूबसूरत विषय पर।

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  3. आकर्षण से बचना मुश्किल काम, फिर प्यार पर ऐतवार तो करना ही पड़ेगा

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  4. बिल्कुल सही कहा है आपने। जहॉ बंधन हो वहॉ प्यार तो हो ही नही सकता।

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  5. बिल्कुल सही कहा है आपने। जहॉ बंधन हो वहॉ प्यार तो हो ही नही सकता।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति...खूबसूरत शब्दों के साथ...

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  7. प्यार के आकर्षण से बच पाना कठिन है. सुंदर प्रस्तुति.

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