कुछ अलग - भाषा, संस्कृति, अभिव्यक्ति :-
काठ छुईं जांत छुई जड़वत कड़ाका
बोरसी से ठेहुन लगल मिलल पड़ाका
रजाई से देह निकलल भयल तमाशा
अंगुरी-कान चुए लागल पानी क बताशा
काँपत देंह जापत जीभ नाक सुन सड़ाका
बोरसी से ठेहुन लगल मिलल पड़ाका
गोबर-गोइठा सानी पानी जाड़ा क कहानी
चूल्हा-चौका चाय-पानी इहे गांव जवानी
लकड़ी, गोईंठा, बोरसी आग फूटे देह धड़ाका
बोरसी से ठेहुन लगल मिलल पड़ाका।
धीरेन्द्र सिंह
26.11.2024
17.20
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